SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ जह० एयस०, उक्क० सत्त रादिदियाणि । णQसवेद० अवत्त० जह० एयस०, उक्क० चउवीसं मुहुत्तं । सम्मत्त० मिच्छत्तभंगो। णवरि अवढि० जह० एगस०, उक्क० असंखेज्जा लोगा। एवमित्थिवेद-पुरिसवेद० । णवरि अवत्त० णqसयवेदभंगो । सम्माभि० सुजगार०-अप्पद०-अवत्त० जह० एगस०, उक० पलिदो० असखे०भागो। अवढि० जह० एयस०, उक्क. असंखेज्जा लोगा। ६३२९. आदेसेण णेरइएसु मिच्छ० ओघं । णवरि अवढि० जह० एयस०, उक० असंखेज्जा लोगा । एवं णस० । णवरि अवत्त० णस्थि । एवं सोलमक०छण्णोक० । णवरि अवत्त० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । सम्म०-सम्मामि० ओघं । एवं सव्वणिरय०। है, निरन्तर हैं । इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तर काल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सात दिन-रात है। नपुंसकवेदके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल चौबीस मुहूर्त है। सम्यक्त्वका भंग मिथ्यात्वके समान है। इतनी विशेषता है कि इसके अवस्थित प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर काल असंख्यात लोकप्रमाण है। इसी प्रकार स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका भंग नपुंसकवेदके समान है। सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थित प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोक प्रमाण है। विशेषार्थ-नाना जीवोंकी अपेक्षा उपशमसम्यक्त्वके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकालको ध्यानमें रखकर यहाँ पर मिथ्यात्वके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल सात दिन-रात्रि कहा है । सम्यक्त्वके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका अन्तरकाल इसी प्रकार जानना चाहिए। कोई अविवक्षित अन्य वेदवाला जीव मरकर नपुंसकवेदी, स्त्रीवेदी या पुरुषवेदी न हो तो वह कमसे कम एक समय तक और अधिकसे अधिक २४ मुहूर्त तक नहीं होता। यही कारण है कि यहाँ पर इन तीनों वेदोंकी अपेक्षा अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल २४ मुहूते कहा है। शेष कथन सुगम है। $३२९. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि इसके अवस्थित प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है। इसी प्रकार नपुंसकवेद की अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि यहाँ इसका अवक्तव्य पद नहीं है। इसी प्रकार सोलह कषाय और छह नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। इसी प्रकार सब नारकियों में जानना चाहिए ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy