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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए भुजगारो ३०७ भुज०-अप्प०-अव ट्ठि०-अवत्त० जह० एयस० अंतोमु०, उक्क० सगढिदी । इत्थिवे०पुरिसवे. भुज-अप्प०-अवत्त० जह० एयस० अंतोमु०, उक्क० पुवकोडिपुधत्तं । अवढि० जह० एगस०, उक्क० सगट्टिदी देसूणा । णवंस. भुज०-अप्प०-अवढि०अवत्त० जह• एयस० अंतोमु०, उक० पुरकोडिपुधत्तं । णवरि पजत्त. इत्थिवेद० णत्थि । जोणिणीसु पुरिस०-णस. णत्थि । इत्थिवेद० भुज०-अप्प० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । अवत्त० णत्थि । ३१४. पंचिंदियतिरिक्खअपज०-मणुसअपज्ज० मिच्छ०-णबुंस० सव्वपदा० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । एवं सोलसक०-छण्णोक० । णवरि अवत्त० जह. उक्क० अंतीमु० । ३१५. मणुसतिये पंचिं०तिरिक्खतियभंगो। णवरि पच्चक्खाण०४ भुज० एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है तथा सभीका उत्कृष्ट अन्तरकाल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है, अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है तथा सभीका उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है। अवस्थित प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। नपुंसकवेदके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है तथा सभीका उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है और योनिनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है । तथा योनिनियोंमें भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । इनमें स्त्रीवेदका अवक्तव्य पद नहीं है। - विशेषार्थ-स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी.भुजगार अल्पतर और अवक्तव्य प्रदेश उदीरणाका उत्कृष्ट अन्तरकाल कर्मभूमिज तिर्यञ्चोंमें ही प्राप्त होनेसे वह पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण कहा है। नपुंसकवेदकी उदय-उदीरणा भोगभूमि में नहीं होती, इसलिए यहाँ इसकी चारों पदरूप प्रदेश उदीरणाका उत्कृष्ट अन्तरकाल भी पूर्वकोटि पृथक्त्वप्रमाण कहा है। योनिनियोंमें एक स्त्रीवेदकी ही उदय-उदीरणा सम्भव है, इसलिए इनमें स्त्रीवेदकी एक तो अवक्तव्य प्रदेश उदीरणा सम्भव नहीं है। दूसरे इनमें स्त्रीवेदकी भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरणाका उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त बननेसे वह उक्त काल प्रमाण कहा है । शेष कथन सुगम है। ३१४. पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्यअपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व व नपुंसकवेदके सब पद प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहते हैं। इसी प्रकार सोलह कषाय और छह नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि यहाँ इनके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । ३१५. मनुष्यत्रिकमें पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चत्रिकके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि प्रत्याख्यान कषायचतुष्कके भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका भंग ओघके
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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