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________________ ३०८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे अप्प ० - अवत्त० ओघं । मणुसिणीसु इत्थिवेद ० अवत्त० जह० अंतोमु०, उक्क० 1 पुधत्तं । [ वेदगो ७ पुब्वकोडि ९३१६. देवेसु मिच्छ० – सम्म० - सम्मामि ० - अनंताणु ०४ भुज ० - अप्प०-३ - अवद्वि०अवत्त० जह० एयस० अंतोमु०, उक्क० एकत्तीस सागरोवमाणि देसूणाणि । णवरि सम्म० अवट्ठि ० जह० एयस०, उक्क० तेत्तीस सागरोवमाणि देखणाणि । बारसक० -भयदुर्गुछ० भुज ० - अप्प ० - अवत्त० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । अवडि० सम्मत्तभंगो । एवं पुरिसवेद ० । णवरि अवत्त० णत्थि । एवं हस्स -रदि० । णवरि अवत्त ० जह० अंतोमु०, उक्क० छम्मासं । एवमरदि - सोगाणं । णवरि भुज० - अप्प० जह० एगस ०, उक्क० छम्मासं । इत्थिवेद० भुज० -- अप्प० जह० एगस ०, उक्क० अंतोमु० । अवडि० जह० एगस०, उक्क० पणवण्णं पलिदोवमाणि देसूणाणि । एवं भवणादि जाव णवगेवज ति । वरि सगट्ठिी देसूणा । णवरि हस्स - रदि - अरदि- सोगाणं भय० भंगो । सहस्सारे इस्स-रदि-अरदि-सोग० देवोधं । भवण ० - वाणवें० - जोदिसि ० इत्थवेद० भुज ० - अप्प ० समान है | मनुष्यनियोंमें स्त्रीवेदके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तअन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्व प्रमाण है । विशेषार्थ – मनुष्यनियोंमें उपशमश्रेणिके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकालको ध्यानमें रख कर स्त्रीवेदके अवक्तव्य प्रदेश उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल कहा है । शेष कथन सुगम है । $ ३१६. देवोंमें मिध्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित प्रदेश उढ़ीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है तथा सबका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम इकतीस सागरोपम है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वके अवस्थित प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागरोपम है । बारह कषाय, भय और जुगुप्साके भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित प्रदेश उदीरकका भंग सम्यक्त्वके समान है । इसी प्रकार पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसका अवक्तव्य पद नहीं है । इसी प्रकार हास्य और रतिकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है । इसी प्रकार अरति और शोककी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके भुजगार और अल्पतर प्रवेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है । स्त्रीवेदके भुजगार और अल्पतर प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम पचवन पल्योपम है । इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर नौ प्रैवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए । इतनी और बिशेषता है कि यहाँ हास्य, रति, अरति और शोकका भंग भयके समान है । मात्र सहस्रार कल्प में हास्य, रति,
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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