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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए परिमाणं २७३ २०८. देवेसु मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि०-अणंताणु०४ णारयभंगो । बारसक०-अट्ठणोक० उक्क० पदेसुदी० जह० एगसमओ, उक्क० असंखेजा लोगा। अणुक्क० पत्थि अंतरं० । एवं सोहम्मीसाण । एवं सणक्कुमारादि जाव गवगेवजा त्ति । णवरि इत्थिवेदो पत्थि । भवण-वाण-०-जोदिसि० देवोघं । णवरि सम्म० बारसकभंगो । अगुदिसादि सव्वट्ठा त्ति सम्म० उक्क० पदेसुदी० जह• एगस०, उक्क० वासपुधत्तं पलिदो० संखे भागो। अणुक्क० पत्थि अंतरं० । बारसक०सत्तणोक० देवोघं । एवं जाव० ।। $२०९. जह० पयदं । दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण सव्वपय० जह० पदेसुदी० जह• एयस०, उक्क० असंखेज्जा लोगा । अजह० णत्थि अंतरं० । वरि है। मनुष्य अपर्याप्त यह सान्तर मार्गणा है । इसलिए इसके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकालको ध्यानमें रख कर यहाँ मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपम के असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। शेष स्पष्टीकरण पूर्व में किये गये स्पष्टीकरण से यथायोग्य समझ लेना चाहिए। २०८. देवों में मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग सामान्य नारकियों के समान है। वारह कषाय और आठ नोकषायों के उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकों का जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकों का अन्तरकाल नहीं है, वे निरन्तर हैं । इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्प में जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार सनत्कुमार कल्प से लेकर नौवेयक तक के देवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्री वेद नहीं है । भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवों में सामान्य देवों के समान भंग है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व का भंग बारह कषायों के समान है। अनुदिश से लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवों में सम्यक्त्व के उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकों का जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर काल नौ अनुदिश और चार अनुत्तरों में वर्षपृथक्त्व प्रमाण और सर्वार्थसिद्धि में पल्योपम के संख्यातवें भाग प्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकों का अन्तरकाल नहीं है, वे निरन्तर हैं । बारह कषाय और सात नौ कषायों का भंग सामान्य देवों के समान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। विशेषार्थ-कृतकृत्यववेदक सम्यग्दृष्टि मनुष्य मर कर भवनत्रिकों में उत्पन्न नहीं होते इसलिये इनमें सम्यक्त्वका भंग बारह कषायों के समान कहा है। नौ अनुदिश और पाँच अनुत्तरोंमें कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टियों की उत्पत्ति के जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल को ध्यान में रखकर यहाँ इनमें सम्यक्त्व के उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकों का जघन्य अन्तरकाल एक समय तथा नौ अनुदिश और चार अनुत्तरोंमें उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्वप्रमाण और सर्वार्थसिद्धि में पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण कहा है । शेष स्पष्टीकरण पूर्वके स्पष्टीकरणको ध्यानमें रखकर कर लेना चाहिए।' $ २०९. जघन्य प्रकृत है। निर्दश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल १. आता प्रत्योः संखे०भागो । बारसक० इलि पाठः।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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