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________________ २६६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ $ १९८. कालो दुविहो – जह० उक० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिद्देसो– ओघेण आदेसेण य | ओघेण सव्वपय उक्क० केवचिरं ० १ जह० एस ०, उक्क० संखेखा समया । अणुक्क० सव्वद्धा । णवरि सम्मामि० उक्क० पदेसुदी० जह० एस ०, उक्क० आवलि० असं० भागो । अणुक्क० जह० अंतोमु०, उक्क० पलिदो० असंखे ० भागो । $ १९९. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० - सोलसक० - सत्तणोक० उक्क० पदे० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असं० भागो । अणुक्क० सव्वद्धा । सम्म० - सम्मामि० ओघं । एवं पढमाए । विदियादि जाव सत्तमा त्ति एवं चैव । णवरि सम्म० उक्क० पदेसुदी ० जह० एस ०, उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । विशेषार्थ — भवनत्रिकोंके एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्धात के समय सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उदीरणा सम्भव नहीं है । इस बातको ध्यानमें रख कर यहाँ उक्त दोनों • प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन कहा है। शेष सब कथन सुगम है । $ १९८. काल दो प्रकारका है-- जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेश उदीका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका काल सर्वदा है। इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यात भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । विशेषार्थ — सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा सम्यक्त्व के अभिमुख हुए अन्तिम समयत्रर्ती सम्यग्मिथ्यादृष्टिके होती है। ऐसे जीव कमसे कम एक समय तक हों और दूसरे समय में न हों यह भी सम्भव है और अत्र यत् सन्तानरूपसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक हों यह भी सम्भव है । यही कारण है कि यहाँ सम्यग्मिथ्यात्व के उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। तथा सम्यग्मिथ्यात्वका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । यही कारण है कि यहाँ सम्यग्मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। अब रहीं शेष प्रकृतियाँ सो उनकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाके स्वामित्वको देखते हुए उनके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय प्राप्त होनेसे वह उक्त प्रमाण कहा है। इनके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका काल सर्वदा है यह स्पष्ट ही है । $ १९९. आदेश से नारकियों में मिध्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आबलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका काल सर्वदा है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है । इसी प्रकार पहली पृथिवीमें जानना चाहिए। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक इसी प्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेश aatain जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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