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________________ ग० ६२] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए पोसणं २६५ १९६. देवेसु मिच्छ०-सोलसक०-अद्वणोक० जह० अजह० लोग० असंखेभागो अट्ठ णव चोइस० देसूणा । सम्म०-सम्मामि० जह० अजह० लोग० असंखे०भागो अट्ठ चोदस० । एवं सोहम्मीसाण । ६१९७. भवण-वाणवें-जोदिसि० मिच्छ०-सोलसक०-अट्ठणोक० जह० अजह. लोग० असंखे०भागो अधुटा वा अट्ठ णव चोइस० देसूणा । सम्म०-सम्मामि० जह० अजह० लोग० असंखे०भागो अद्धट्ठा वा अट्ट चोद्दस० । सणक्कुमारादि जाव सहस्सारा त्ति सम्बपय० जह• अजह० पदेसुदी० लोग० असंखे०भागो अट्ठ चोदस० । आणदादि जाव अच्चुदा ति सव्वपय० जह. अजह. लोग० असंखे०भागो छ चोदस० । उवरि खेत्तमंगो । एवं जाव० । विशेषार्थ—मनुष्यत्रिकका परिणाम संख्यात है। यद्यपि इनके नीचे सातवीं पृथिवी तक मारणान्तिक समुद्धात करते समय सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको छोड़कर शेष प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेश उदीरणा बन जाती है, परन्तु उस सब क्षेत्रका योग लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण होनेसे यहाँ वह उक्तप्रमाण कहा है । शेष कथन सुगम है। १९६. देवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और आठ नोकषायोंके जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्पके देवोंमें जानना चाहिए। विशेषार्थ—सामान्यसे देवोंके और सौधर्म ऐशान कल्पके देवोंके प्रकृतमें उपयोगीस्पर्शनको जानकर मिथ्यात्व आदि २५ प्रकृतियोंकी अपेक्षा यह स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए । मात्र सम्यग्दृष्टि देव एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्धात नहीं करते, इसलिए इनमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वके जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरकोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग और अतीत स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। ६ १९७. भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और आठ नोकषायोंके जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके कुछ कम साढ़े तीन, कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा वसनालोके कुछ कम साढ़े तीन और कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सनत्कुमार कल्पसे लेकर सहस्त्रार कल्प तकके देवोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आनत कल्पसे लेकर अच्युत कल्प तकके देवोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। ऊपरके देवोंमें स्पर्शनका भंग क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ३४
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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