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________________ गा० ६२] उत्तरपडिपदेसउदीरणाए पोसणं २६१ 5 १८८. देवेसु सम्म० उक० पदे० खत्तं । अणुक० पदेसुदी० केव० पोसि० १ लोग० असंखे०भागो अट्ठ चोदस० । सम्मामि० उक्क० अणुक्क० पदे० लोग० असंखे०भागो अट्ठ चोइस० । सेसपय० उक्क० पदे० लोग० असंखे०भागो अट्ठ चोदस० । अणुक्क० लोग० असंवे०भागो अट्ठ-णव चोदस० भागा वा देसूणा । एवं सोहम्मीसाणेसु । 5 १८९. भवण०-वाणवे०-जोदिसि० सम्म०-सम्मामि० उक्क० अणुक्क० लोग० असंखे०भागो अद्धट्ठा वा अट्ठ चोइस० । सेसपय० उक्क० लोग० असंखे०भागो अद्भुट्टा वा अट्ट चोइस० । अणुक्क० लोग० असंखें०भागो अट्ठा वा अढ णव चोद्दस० देसूणा। 5 १८८. देवोंमें सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा असनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्पमें जानना चाहिए। विशेषार्थ-सामान्य देवोंके वर्तमान और अतीत स्पर्शनको ख्यालमें लेकर यहाँ सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको छोड़कर शेष प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, विहारवत्स्वस्थान, वेदना कषाय और वैक्रियिक पदोंकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण और मारणान्तिक पदकी अपेक्षा मेरुमूलसे ऊपर कुछ कम सात राजु और नीचे कुछ कम दो राजु कुल असनालीके नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष कथन सुगम है। सौधर्म और ऐशान कल्पमें यह स्पर्शन इसी प्रकार बन जानेसे उसे सामान्य देवोंके समान जाननेकी सूचना की है। $ १८९. भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा सनालीके कुछ कम साढ़े तीन और कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा त्रसनालीके कुछ कम साढ़े तीन और कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा सनालीके कुछ कम साढ़े तीन कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ-भवनत्रिकमें सम्यग्दृष्टि जीव मर कर उत्पन्न नहीं होते, इसलिए इनमें सम्यक्त्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंके स्पर्शनके समान बन जानेसे दोनोंका स्पर्शन एक समान कहा है। शेष कथन सुगम है।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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