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________________ २६० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [ वेदगो ७ १८५. पंचिंदियतिरिक्खतिये सम्म-सम्मामि० तिरिक्खोपं । मिच्छ:अट्ठक० उक्क० पदे० खेत्तं । अणुक्क० पदेसुदी० केव० पोसिदं ? लोग. असंखे०भागो सव्वलोगो वा । एवमट्ठक०-णवणोक० । णवरि उक० पदे० लोग० असंखे.. भागो छ चोदस० । णवरि वेदा जाणियव्या । १८६. पंचिंदियतिरिक्खअपज०-मणुसअपज० सव्वपर्य० उक० पदे० खेत्तं । अणुक्क० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । १८७, मणुसतिये सम्म०-सम्मामि० खेत्तं । सेस० पय० उक्क० खेत्तं । अणुक० पदेसुदी० लोग० असंखे०भागो मुव्वलोगो वा । वेदके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण कहा है। इनमें सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान ही है यह स्पष्ट ही है। १८५. पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिकमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग सामान्य तिर्यश्चोंके समान है। मिथ्यात्व और आठ कषायोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार आठ कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालोके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि अपना-अपना वेद जान लेना चाहिए। विशेषार्थ-पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन मारणान्तिक और उपपादपदकी अपेक्षा सर्व लोकप्रमाण है, इसी तथ्यको ध्यानमें रखकर मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका उक्त क्षेत्र प्रमाण स्पर्शन कहा है ।शेष कथन सुगम है। $ १८६. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ-उक्त जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा सर्वविशुद्ध अथवा तत्प्रायोग्य विशुद्ध जीवोंके होती है, यह जानकर सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। तथा उक्त जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत :स्पर्शन मारणान्तिक और उपपाद पदकी. अपेक्षा सर्व लोकप्रमाण है, इसलिए यहाँ उक्त सब प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका उक्त क्षेत्रप्रमाण स्पर्शन कहा है। १८७. मनुष्यत्रिकमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग क्षेत्रके समान है। शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। . विशेषार्थ—यहाँ भी स्वामित्व और मनुष्यत्रिकके स्पर्शनको जानकर यह स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए । इसो प्रकार आगे भी समझ लेना चाहिए।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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