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गा० ६२] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए पोसणं
२५९ १८४. तिरिक्खेसु मिच्छ०-अट्ठक० उक० पदेसुदी० खेत्तं । अणुक्क० सव्वलोगो । सम्म० उक्क० पदे० उदी० खेत्तं । अणुक्क० पदे० केव० पोसिदं ? लोग० असंखे०भागो छ चोदस० । अट्ठक०-णवणोक० उक्क० पदेसुदी० केव० पोसि० ? लोग० असंखे० छ चोदस० । अणुक्क० पदे० सव्वलोगो'। णवरि इत्थिवेद-पुरिसवेद० अणुक्क० पदे. लोग. असंखे०भागो सव्वलोगो वा । सम्मामि० उक्क० अणुक्क० पदेसुदी० खेत्तं । रकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है यह स्पष्ट ही है। तथा सम्यम्मिथ्यात्व गुणके साथ मरण ही नहीं होता और न सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव मारणान्तिक समुद्धात ही करते हैं, इसलिए सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन भी क्षेत्रके समान बन जाता है। शेष कथन सुगम है।
$ १८४. तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्व और आठ कषायोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आठ कषाय और नौ नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है।
विशेषार्थ--तिर्यश्चोंमें मिथ्यात्व और प्रारम्भकी आठ कषायोंकी उदीरणाके स्वामीको देखते हुए इनकी अपेक्षा स्पर्शनका भंग क्षेत्रके समान लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होनेसे उसे क्षेत्रके समान जाननेकी सूचना की है। इनके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंने सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है यह स्पष्ट ही है। सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा दर्शन
यकी क्षपणाके समय यथास्थान प्राप्त होती है, इसलिए इसके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होनेसे उसे क्षेत्रके समान बतलाया है। तथा वेदकसम्यग्दृष्टि तिर्यञ्चोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण प्राप्त होनेसे उसे उक्तप्रमाण बतलाया है। आठ कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा सर्वविशुद्ध या तत्प्रायोग्य विशुद्ध संयतासंयतके होती है, यतः ऐसे जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण बन जाता है, इसलिए उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। इनके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकोंका स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। मात्र स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवोंका वर्तमान निवास लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही है, इसलिए स्त्रीवेद और पुरुष
१. आप्रतौ सम्म• उक्क० पदे. उदी० खेत। अणक्क० पदे ० केव० पोसिदं ? लोग० असंखे०भागो छ चोद्दस० । अणुक्क० पदे० सब्वलोगो।