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________________ ग० ६२ ] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए एयजीवेण अंतरं २४१ सम्मामि० ० उक० अणुक्क० जह० अंतोमु०, उक० उवडपोग्गलपरियङ्कं । एवं सम्म० । वरि उक्क० पदेसुदी० णत्थि अंतरं । चदुसंजल० - भय - दुगुंछा० उक्क० णत्थि अंतरं । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । इत्थि वेद - पुरिसवेद० उक्क० णत्थि अंतरं । अणुक्क० जह० अंतोमु०, पुरिसवेद० जह० एगस०, उक्क० अनंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । ण स ० उक्क० णत्थि अंतरं । अणुक्क० जह० अंतोमु०, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं । इस्स- रदि- अरदि-सोग० उक्क० णत्थि अंतरं । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि अरदि-सोग० छम्मासं । $ १५९. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० - अनंताणु०४ उक्क० पदेसुदी० जह० पलिदो ० असं० भागो, अणुक्क० जह० अंतोमु०, उक्क० दोन्हं पि तेत्तीसं सागरोमाणि देणाणि । सम्मामि० उक० अणुक० पदेसुदी० जह० अंतोमु०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि देणाणि । एवं सम्म० । णवरि उक्क० णत्थि अंतरं । बारसक० - सत्तणोक० ६० उक्क० पदेसुदी० जह० एयस०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि देणाणि । उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल उपार्ध पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । इसी प्रकार सम्यक्त्वकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । चार संज्वलन, भय, और जुगुप्साके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल स्त्रीवेदका अन्तर्मुहूर्त है और पुरुषवेदका जघन्य अन्तरकाल एक समय है तथा दोनोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनोंके बराबर है । नपुंसकवेदके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सौ सागरोपमपृथक्त्व प्रमाण है । हास्य, रति, अरति और शोकके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल हास्य और रतिका साधिक तेतीस सागरोपम तथा अरति और शोकका छह महीना है । 1 विशेषार्थ -- सम्यक्त्व, चार संज्वलन तथा नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा उसउस प्रकृतिकी क्षपणा करते समय यथास्थान प्राप्त होती है, इसलिए इनके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकके अन्तरकालका निषेध किया है। शेष कथन सुगम है । $ १५९. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है, अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और दोनोंका ही उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागरोपम है । सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागरोपम् है । इसी प्रकार सम्यक्त्वक अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । बारह कषाय और सात नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक ३१
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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