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________________ २० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो लद्धमंतरं । एदं चेव सुत्तं जाणावयं, जहा उक्कस्सपदेसुदीरणा परिणाममेत्तमवेक्खदे दव्वविसेसं णावेक्खदि ति । * उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियह देसूणं । $ १५६. कुदो ? पुव्वं व आदि कादूर्णतरिय देसूणद्धपोग्गलपरियट्टमेत्तकालेण पुणो वि पढमसम्मत्तमुप्पोइय मिच्छत्तं गंतूणंतोमुहुत्तेण संजमाहिमुहो होदूण मिच्छाइद्विचरिमसमए उकस्सपदेसुदीरणाए परिणदम्मि तदुवलंभादो। * सेसेहिं कम्मेहिं अणुमग्गियूण णेदव्वं । $ १५७. सुगममेदमत्थसमप्पणासुत्तं । संपहि एदेण सुत्तेण सूचिदत्थविवरणट्ठमुच्चारणाणुगममेत्थ कस्सामो । त जहा १५८. अंतरं दुविहं-जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०-अणताणु०४ उक्क० पदेसुदी० जह० अंतोमु०, उक. उवड्डपोग्गलपरियढें । अणुक्क० जह० एगस०, मिच्छ० अंतोमु०, उक्क० बेछावट्ठिसागरो० देसूणाणि । एवमट्ठक० । णवरि अणुक्क० जह• एयस०, उक्क. पुन्वकोडी देसूणा । प्राप्त हुआ। यहाँ इस सूत्रसे मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकके जघन्य अन्तरकालका ज्ञापन होता है वहाँ इसी सूत्रसे यह भी जाना जाता है कि उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा परिणाममात्रकी अपेक्षा करती है, द्रव्यविशेषकी अपेक्षा नहीं करती। * उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम उपार्ध पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। $ १५६. क्योंकि पहलेके समान मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाको आदि करके और अन्तर करके कुछ कम अर्ध पुद्गल परिवर्तनप्रमाण कालके बाद फिर भी प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न कर और मिथ्यात्वमें जाकर अन्तर्मुहूर्त में संयमके अभिमुख होकर मिथ्यादृष्टिके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणारूपसे परिणत होने पर उक्त अन्तरकालकी प्राप्ति होती है। * शेष कर्मोंका विचार कर अन्तरकाल जानना। . ६ १५७. अर्थका समर्पण करनेवाला यह सूत्र सुगम है। अब इस सूत्र द्वारा सूचित हुए अर्थका विवरण करनेके लिए उच्चारणाका अनुगम यहाँ पर करेंगे। यथा $ १५८. अन्तरकाल दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्महर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल : पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अनन्तानुबन्धीचतुष्कका एक समय है, मिथ्यात्वका अन्तर्मुहूर्त है और दोनोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम दो छयासठ सागरोपम है। इसी प्रकार आठ कषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है। सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश १. आता प्रत्योः --मुवेक्खदे इति पाठः ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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