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________________ २३१ गा०६२] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए एयजीवेण कालो अणुक्क० जह० अंतोमु०, उक्क० सगहिदी । णवंस० अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० पुवकोडिपुधत्तं । णवरि पञ्जत्त० इथिवेदो पत्थि । जोणिणीसु पुरिस०-णस० पत्थि । सम्म० उक्क० पदेसुदी० जह० एगस०, उक्क. आवलि० असंखे०भागो । ...६१३४. पंचिंदियतिरिक्खअपज०-मणुसअपज. सध्वपयडी० उक्क० पदेसुदी० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । १३५. मणुसतिये पंचिंदियतिरिक्खतियभंगो' । णवरि सव्वपयडी० उक्क० पदेसुदी० जह० उक्क० एगस० । सम्म० अणुक्क० जह० अंतोमु०, उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि देसूणाणि । गवरि पज० इत्थिवेदो पत्थि । सम्म० अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० तं चेव । मणुसिणीसु पुरिसवेद-णवुस० णत्थि । $१३६. देवेसु मिच्छ० उक्क० पदेसुदी० जह० उक्क० एगस० । अणुक्क० जह० अंतोमु०, उक्क० एक्कत्तीसं सागरोवमाणि । सम्मामि०-अणंताणु०४ ओधं । सम्म० उक्क० पदेसुदी. जह० उक्क० एगस० । अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० विशेषता है कि इनमें मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अपनी- अपनी स्थितिप्रमाण है। नपुंसकवेदके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पूर्व कोटिपृथत्वप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है तथा योनिनियों में पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है। योनिनियोंमें सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। - $ १३४. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। ६१३५. मनुष्यत्रिकमें पश्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि सब प्रक्रतियोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। सम्यक्त्वके अनुत्कृष्ट प्रदेशउदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्योपम है । इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है। तथा इनमें सम्यक्त्वके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल वही है । मनुष्यिनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है। ६ १३६. देवोंमें मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल इकतीस सागरोपम है। सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग ओघके समान है। सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट प्रदेश १. आ प्रतौ तिरिक्खभंगो इति पाठः ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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