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________________ २३० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । एवं णवंस ० - अरदि- सोग० । णवरि अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० तेतीसं सागरोवमाणि । एवं सत्तमाए । णवरि सम्म० उक्क० जह० एस ०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । एवं पढमादि जाव छट्टि ति । वरि सगहिदी । अरदि- सोगाणं हस्स-रदिभंगो। णवरि पढमाए सम्म० उक्क० पदेसुदी० जहण्णुक्क० एयस० । $ १३३. तिरिक्खेसु मिच्छ० उक्क० पदेसुदी ० जह० उक्क० एस० । अणुक्क० जह० अंतोमु०, उक्क० अनंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । सम्म० उक्क० पदेसुदी० जह० उक्क० एयस० । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० तिणिण पलिदो - वमाणि देणाणि । सम्मामि० - अटुक० ओघं । अट्ठक० - छण्णोक० उक्क० पदेसुदी • जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । अणुक्क० जह० एस ०, उक्क० अंतोम्म्रु० । एवमित्थिवेद–पुरिसवेद० । णवरि अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० तिण्णि पलिदो ० पुव्वकोडि धत्तं । एवं णवुंस० । णवरि अणुक्क० जह० एयस०, उक्क ० अनंतकालमसंखेज पोग्गलपरियट्टा । एवं पंचिदियतिरिक्खतिये | णवरि मिच्छ० रकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार नपुंसकवेद, अरति और शोककी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागरोपम है । इसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि यहाँ सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार पहली पृथिवीसे लेकर छठी पृथिवी तकके नारकियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। इन पृथिवियोंमें अरति और शोकका भंग हास्य और रतिके समान है । इतनी और विशेषता है कि पहली पृथिवीमें सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय 1 $ १३३. तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट का समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनोंके बराबर है । सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्योपम है । सम्यग्मिथ्यात्व और आठ कषायोंका भंग ओके समान है । आठ कषाय और छह नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आबलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उड़ीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार जीवेद और पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम है । इसी प्रकार नपुंसक वेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनोंके बराबर है । इसी प्रकार पचेन्द्रिय तिर्यवत्रिक में जानना चाहिए। इतनी
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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