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________________ गा० ६२ ] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए एयजीवेण कालो २२९ अणुक• जहण्णुक• अंतोमु० । एवं सोलसक० - मय-दुर्गुछ० । णवरि अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । तिन्हं वेदाणं उक्क० पदेसुदी० जह० उक० एयसमओ । अणुक० जह० एस ०, पुरिसवेद० अणुक० जह० अंतोमु०, उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं सागरोवमसदपुधचं अनंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । हस्स - रदि - अरदि-सोग ० उक्क० पदेसुदी ० जह० उक० एगस० । अणुक्क० जह० उक्क० छम्मासं तेत्तीस सागरो ० सादिरेयाणि । एयस०, $ १३२. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० उक्क० पदेसुदी० जह० उक्क० एस० । अणुक० जह० अंतोमु०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि । सम्म० उक्क० पदेसुदी० जह० उक्क० एगस० । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देभ्रूणांणि । सम्मामि० ओषं । अणंताणु०४ उक्क० पदेसुदी० जह० उक्क० एस० । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० अंतोनु० । एवं बारसक० - इस्स - रदि-भय-दुगुंछाणं । णवरि उक्क० पदेसुदी ० सागरोपम है | सम्यग्मिध्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अनुत्कृष्ट प्रदेशउदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तीन वेदोंके उत्कृष्ट प्रदेश- उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेश - उदीरकका जघन्य काल स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका एक समय है, पुरुषवेदके अनुत्कृष्ट प्रदेश-उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट काल क्रमसे सौ पल्योपमपृथक्त्वप्रमाण, सौ सागरोपमपृथक्त्वप्रमाण और अनन्तकाल है जो अनन्तकाल असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनोंके बराबर है । हास्य, रति, अरति और शोकके उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेश- उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल हास्य- रतिका छह महीना तथा अरति शोकका साधिक तेतीस सागरोपम है । विशेषार्थ — ओघ से सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश-उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल मूल चूर्णिसूत्रोंमें ही बतलाया है, इसलिए यहाँ अलग से स्पष्टीकरण नहीं किया है। इसी न्यायसे गतिमार्गणाके अवान्तर भेदोंमें भी जान लेना चाहिए। मूल चूर्णि - सूत्रोंमें इसका भी निर्देश किया है। जो नहीं कहा है वह उक्त कथनसे हो ज्ञात हो जाता है । $ १३२. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व के उत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागरोपम है । सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट का कुछ कम सागरोपम है । सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है । अनन्तानुबन्धीचतुष्कके उत्कृष्ट प्रदेश-उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका जघन्य क समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार बारह कषाय, हास्य, रति, भय और जुगुप्साकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके उत्कृष्ट प्रदेश-उदी १. ता०प्रतौ अणुक्क० जह० एस० [ उक्क० ] अतोमु० इति पाठः ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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