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________________ २२८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ___ * णवरि णवुसयवेद-अरइ-सोगाणमुदीरगो उकस्सावो तेत्तीसं सागरोवमाणि । __१२९. कुदो ? एदेसि कम्माणं पयडिउदीरणुकस्सकालस्स णिरयगईए तप्पमाणत्तोवलंभादो। एवं णिरयोघो समत्तो। संपहि एदेणाणुमाणेण सेसासु वि गदीसु उक्कस्साणुकस्सपदेसुदीरगकालो साहेयन्यो त्ति पदुप्पायणट्टमुत्तरसुत्तं भणइ * एवं सेसासु गदीसु उदीरगो साहेयव्यो । १३०. सुगममेदमत्थसमप्पणासुतं । णवरि उदीरगो साहेयव्वो ति वुत्ते पदेसुदीरगकालो साहेयव्यो ति पयरणवसेणाहिसंबंधो कायव्वो। संपहि एदेण सुत्तपबंधेण सूचिदत्थविसये सुहावगमुप्पायणट्ठमोघादेसेहिं विसेसियूण उच्चारणाणुगममिह कस्सामो । तं जहा १३१. कालो दुविहो–जह० उक० । उकस्से पयदं । दुविहो णिहेसोओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० उक्क० पदेसुदी० जहण्णुक्क० एगस० । अणुक्क० तिण्णि भंगा । जो सो सादिओ सपञ्जवसिदो, तस्स जह० अंतोमु०, उक्क० उबड्डपोग्गलपरियढें । सम्म० उक्क० पदेसुदी० जहण्णुक० एयस० । अणुक्क० जह० अंतोम०, उक्क० छावहिसागरो० देसूणाणि । सम्मामि० उक्क० पदेसुदी० जहण्णुक० एगस० । * इतनी विशेषता है कि नपुंसकवेद, अरति और शोकके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका उत्कृष्ट काल तेतीस सागरोपम है। $ १२९. क्योंकि नरकगतिमें इन कर्मोंकी प्रकृति उदीरणाका उत्कृष्ट काल तत्प्रमाण पाया जाता है । इस प्रकार सामान्य नारकियोंके प्रदेश उदीरणाका काल समाप्त हुआ। अब इस विधिसे शेष गतियोंमें भी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके उदीरकका काल साध लेना चाहिए इस बातका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं * इसी प्रकार शेष गतियोंमें भी उदीरकको साध लेना चाहिए । $ १३०. अर्थका समर्पण करनेवाला यह सूत्र सुगम है। इतनी विशेषता है कि 'उदीरगो साहेयव्वों' ऐसा कहनेपर प्रदेश-उदीरकका काल साध लेना चाहिए ऐसा प्रकरणवश सम्बन्ध कर लेना चाहिए । अब इस सूत्रप्रबन्ध द्वारा सूचित किये गये अर्थका सुखपूर्वक ज्ञान करानेके लिए ओघ और आदेश सहित उच्चारणाका अनुगम यहाँ पर करेंगे । यथा ६१३१. काल दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेश-उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट प्रदेश-उदीरकके तीन भंग हैं। उनमेंसे जो सादि-सान्त भंग है उसकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल उपाधं पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेश-उदोरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट प्रदेश-उदीरकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम छयासठ
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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