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________________ मा० ६२ ] उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए एयजीवेण कालो २२७ * जहणेण एगसमओ । $ १२४. कुदो १ सत्थाणसम्माइट्ठिस्स सव्वुक्कस्सविसोहीए ईसिमज्झिमपरिणामेण वा एगसमयं परिणमिय बिदियसमये परिणामंतरं गदस्स तदुवलंभादो । * उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागो । $ १२५. कुदो ? उक्कस्सपदेसुदीरणापाओग्गचरिमखंडज्झवसाणट्ठाणेसु असंखेजलोगमेत्ते अवट्ठाणकालस्स उक्कस्सेण तप्पमाणत्तोवएसादो । * अणुक्कस्सपदेसुदीरगो केव चिरं कालादो होदि १ $ १२६. सुगमं । * जहणणेण एगसमओ । $ १२७. कुदो १ उकस्सादो अणुक्कस्सभावं गंतूण एगसमएण पुणो वि परिणामवसेणुक्कस्तभावेण परिणदम्मि सव्वेसिमेगसमयमेत्ताणुक्कस्सजहण्णकालोवलंभादो । * उक्कस्सेण अंतोमुहुत्त । $ १२८. कुदो १ कसाय - णोकसायाणं पयडिउदीरणाए उक्कस्सकालस्स तप्पमाणतोवलंभादो । एदेण सामण्णणिद्देसेण णवंसयवेदारह-सोगाणं पि अंतोनुहुत्तमेत्तुकस्सकालाइप्पसंगे तप्पडिसेहमुहेण तत्तो बहुअकालपरूवणट्ठमाह * जघन्य काल एक समय है । $ १२४. क्योंकि स्वस्थान सम्यग्दृष्टिके सबसे उत्कृष्ट विशुद्धिरूपसे या ईषत् मध्यम परिणामरूपसे एक समय तक परिणम कर दूसरे समय में दूसरे परिणामको प्राप्त होने पर एक समयप्रमाण जघन्य काल प्राप्त होता है । * उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । $ १२५. क्योंकि उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाके योग्य अन्तिम खण्डसम्बन्धी असंख्यात लोकप्रमाण अध्यवसानस्थानोंमें ठहरनेके कालका उपदेश उत्कृष्टरूपसे तत्प्रमाण ही पाया जाता है । * अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरकका कितना काल है १ $ १२६. यह सूत्र सुगम है । * जघन्य काल एक समय है । $ १२७. क्योंकि उत्कृष्टसे अनुत्कृष्टपनेको प्राप्त कर एक समयके बाद फिर भी परिणामवश उत्कृष्टपनेके प्राप्त होने पर सभीकी अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय पाया जाता है । * उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । $ १२८. क्योंकि कषाय और नोकषायोंकी प्रकृति उदीरणाका उत्कृष्ट काल तत्प्रमाण पाया जाता है। इस सामान्य निर्देशसे नपुंसकवेद, अरति और शोकका भी उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है ऐसा अतिप्रसंग प्राप्त होने पर उसके प्रतिषेधद्वारा उससे बहुत कालके net करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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