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________________ २०५ गा० ६२] मूलपयडिपदेसउदीरणाए भुजगारे पोसणं पज०-मणुसिणी-सव्वदृदेवा. मोह. सव्वपदा के० १ संखेज्जा । एवं जाव० । ५७. खेत्ताणु० दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० अवत्त० केव० १ लो० असंखे०भागे । सेसपदा० सव्वलोगे । एवं तिरिक्खा० । णवरि अवत्त० पत्थि । सेसगदीसु मोह० सव्वपदा० लोग० असंखे०भागे । एवं जाव० । ५८. पोसणाणु० दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोहक अवत्त० लोग० असंखे०भागो। सेसपदा० सव्वलोगो। एवं तिरिक्खा० । णवरि अवत्त० णत्थि । ५९. आदेसेण णेरइय० मोह. सव्वपदा० लोग० असंखे०भागो छ चोद्दस० । एवं विदियादि जाव सत्तमा त्ति । णवरि सगपोसणं ! पढमाए खेत्तं । सव्वपंचिंदियतिरिक्ख०-मणुसअपज. सन्वपदा० लोगस्स असंखे०भागो सव्वलोगोवा । एवं मणुसतिये। णवरि अवत्त० खेत्तं । देवेसु मोह० सव्वपद० लोग० असंखे०भागो अढ णव चोद्दस० । अवक्तव्य पदके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यिनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें मोहनीयके सब पदोंके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसी प्रकार अनाहारक मागेणा तक जानना चाहिए। $ ५७. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयके अवक्तव्य पदके उदीरकोंका क्षेत्र कितना है? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। शेष पदोंके उदीरकोंका क्षेत्र सर्व लोकप्रमाण है। इसी प्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए । इतती विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं है। शेष गतियोंमें मोहनीयके सब पदोंके उदीरकोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ६५८. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयके अवक्तव्य पदके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके उदीरकोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार तिर्यश्चोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं है। ६५९. आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयके सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन कहना चाहिए। पहली पृथिवीमें क्षेत्रके समान भंग है। सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पदका भंग क्षेत्रके समान है। सामान्य देवोंमें मोहनीयके सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार १. आ०प्रतौ असंखे भागो इति पाठः । २. आ०प्रतौ असंखे०भागो इति पाठः।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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