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________________ २०६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे 1 [वेदगो ७ एवं भवणादि जाव अचुदा त्ति । णवरि सगपोसणं । उवरि खेत्तभंगो । एवं जाव० । ६०. कालाणु० दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० अवत्त० जह० एयसमओ, उक्क० संखेजा समया । सेसपदा० सव्वद्धा । एवं तिरिक्खा० । णवरि अवत्त० णत्थि । सव्वणिरय-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-देवा जाव अवराजिदा त्ति मोह. भुज०-अप्प० सव्वद्धा । अवढि० जह० एगस०, उक० आवलि० असंखे०भागो । एवं मणुसा० । णवरि अवत्त० ओघं । एवं पञ्जत्त-मणुसिणीसु । एवं सव्वडे। णवरि अवत्त० "त्थि । मणुसअपज. मोह. भुज०-अप्प० जह० एयस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । अवढि० जह० एगस०, उक्क. आवलि. असंखे०भागो । ६६१. अंतराणु० दुविहो णिद्देसो-ओषेण आदेसेण य । ओषेण मोह. अवत्त० जह० एयस०, उक्क० बासपुधत्तं । सेसपदाणं णत्थि अंतरं । एवं तिरिक्खा० । णवरि अवत्त० णत्थि । सव्वणिरय-सव्वपंचिंतिरिक्ख-सव्वदेवा ति भुज-अप्प० भवनवासियोंसे लेकर अच्युत कल्प तकके देवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन कहना चाहिए। ऊपर क्षेत्रके समान स्पर्शन है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। विशेषार्थ--स्वामित्व और स्पर्शनको ध्यानमें रखकर प्रकृतमें ओघ और चारों गतियों तथा उनके अवान्तर भेदोंकी अपेक्षा स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए। अन्य कोई विशेषता न होनेसे यहाँ खुलासा नहीं किया। ६०. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयके अवक्तव्य पदके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। शेष पदोंके उदीरकोंका काल सवदा है। इसी प्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं है। सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तियश्च और सामान्य देवोंसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें मोहनीयके भुजगार और अल्पतर पदोंके उदीरकोंका काल सर्वदा है। अवस्थित पदके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार मनुष्योंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पदका भंग ओघके समान है। इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियों में जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं है। मनुष्य अपर्याप्तकों में मोहनीयके भुजगार और अल्पतर पदों के उदीरकोका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थित पदके उदीरकों का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। . ६ ६१. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयके अवक्तव्य पदके उदीरकों का जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। शेष पदों के उदीरकों का अन्तरकाल नहीं है। इसी प्रकार तियश्चों में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं है। सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च और सब देवों में मोहनीयके मुजगार और अल्पतर पदके उदीरकों का
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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