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________________ गा० ६२] मूलपयडिपदेसउदीरणाए एयजीवेण अंतरं २१. जह० पयदं । दविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० जह० एयस०, उक्क० अणंतकालमसंखेजा० । अज० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । २२. आदेसेण णेरइय० मोह० जह० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । अजह० जह० एगस०, उक्क. आवलि. असंखे०भागो । एवं सत्तसु पुढवीसु । गवरि अप्पप्पणो सगढिदी देसूणा । २३. तिरिक्खेसु ओघं । णवरि अजह० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो । पंचिंतिरिक्खतिये मोह० जह० जह० एयस०, उक्क० पुवकोडिपुधत्तं । विशेषार्थ—मनुष्यत्रिकमें मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा क्षपक सूक्ष्मसाम्परायिकके उसके कालमें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष रहने पर ही होती है। यतः यह दूसरी बार प्राप्त नहीं हो सकती, इसलिए इसके अन्तरकालका निषेध किया है। तथा उक्त तीनों प्रकारके मनुष्योंके उपशान्तमोह होनेके पूर्व और यथास्थान बादमें मोहनीयकी अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा होती है, उपशान्तमोहमें अनुदीरक रहता है और उपशान्तमोहका काल अन्तर्मुहूर्त है, इसलिए यहाँ मोहनीयकी अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है। शेष कथन सुगम है। .. २१. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश ! ओघसे मोहनीयकी जघन्य प्रदेश उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनोंके बराबर है । अजघन्य प्रदेश उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। विशेषार्थ-ओघसे मोहनीयकी जघन्य प्रदेश उदीरणा सर्व संक्लिष्ट या तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि जीवके होती है। यतः ऐसे परिणाम कमसे कम एक समयके अन्तरसे और अधिकसे अधिक पूर्वोक्त अनन्त कालके अन्तरसे हो सकते हैं, इसीसे यहाँ मोहनीयकी जघन्य प्रदेश उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्तकाल कहा है । तथा अजघन्य प्रदेश उदीरणा करनेवाला जो जीव एक समयके लिए जघन्य प्रदेश उदीरणा करके पुनः अजघन्य प्रदेश उदीरणा करने लगता है उसके अजघन्य प्रदेश उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय प्राप्त होनेसे वह उक्त कालप्रमाण कहा है। तथा उपशान्तमोहका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होनेके कारण अजघन्य प्रदेश उदीरणाका उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है, क्योंकि सूक्ष्मसाम्परायकी अन्तिम आवलिमें और उपशान्तमोह गुणस्थानमें मोहनीयकी उदीरणा नहीं होती ।। २२. आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयकी जघन्य प्रदेश उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागरोपम है। अजघन्य प्रदेश उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी अपनी स्थिति जाननी चाहिए। ६२३. तिर्यञ्चोंमें ओघके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि अजघन्य प्रदेश उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें मोहनीयकी जघन्य प्रदेश उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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