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________________ गा० ६२ ] - मूलपयडिपदेसउदीरणाए एयजीवेण कालो १८५ $ १३. आदेसेण णेरइय० मोह० उक्क० पदे० जह० एगस०, उक० आवलि० असंखे० भागो । अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० सगट्ठिदी । एवं सत्तसु पुढवीसु । वरि अणुक० अप्पप्पणो सगट्टिदी | १४. तिरिक्खेसु मोह० उक्क० पदे० जह० एस ०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । अणुक० जह० एगस०, उक्क० अनंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । पंचिदियतिरिक्खतिये मोह० उक० पदे० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे ०भागो । अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० सगट्ठिदी । पंचि०तिरिक्खअपज० - मणुस - अपज० मोह • उक्क० पदे० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । अणुक्क ० अनुत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणाका अन्त करता है उसके मोहनीयको अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका उत्कृष्ट काल उपार्ध पुद्गल परिवर्तन प्रमाण प्राप्त होनेसे वह उक्त प्रमाण कहा है। इसका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त भी इसी प्रकार घटित कर लेना चाहिए । अर्थात् जो अन्तर्मुहूर्त के भीतर दूसरी बार श्रेणि पर आरोहण करता है उसके मोहनीयकी अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होनेसे वह उक्त प्रमाण कहा है। $ १३. आदेश से नारकियोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है । इसी प्रकार सातों थिवियों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अनुत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणाका उत्कृष्ट काल अपनीअपनी स्थितिप्रमाण है । विशेषार्थ —– जो असंयतसम्यग्दृष्टि नारकी एक समय तक सर्व विशुद्धिको प्राप्त कर मोहनीयको उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणा करता है उसके मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है और जो उक्त प्रकारका नारकी जीव लगातार उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता रहता है वह आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक ही उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा कर सकता है, क्योंकि एक जीवकी अपेक्षा इसका उत्कृष्ट काल ही इतना है । यही कारण है कि यहाँ मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। यहाँ इसकी अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है यह स्पष्ट ही है । शेष कथन सुगम है । $ १४. तिर्यों में मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनोंके बराबर है । पचेन्द्रिय तिर्यवत्रिकमें मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । पचेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । मनुष्यत्रिक में मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश २४
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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