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________________ १८४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ तिये । पंचिंतिरिक्खअपज०-मणुसअपज० मोह० उक्क० पदे० कस्स ? अण्णद. तप्पाओग्गविसुद्धस्स । एवं जाव० । 5 ११. जह० पयदं । दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० जह० पदेसुदी० कस्स ? अण्णद० मिच्छाइडिस्स सव्वसंकिलिट्ठस्स तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स वा । एवं सव्वणिरय०-सव्वतिरिक्ख०-सव्वमणुस-देवा जाव सहस्सारा त्ति । णवरि पंचिदियतिरि०अपज-मणुसअपज० मोह. जह• पदे. कस्स ? अण्णद० तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स । आणदादि जाव गवगेवजा ति मोह० जह० पदे० कस्स ? अण्णद० मिच्छाइद्विस्स तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स । अणुदिसादि सव्वट्ठा त्ति मोह० जह० पदे कस्स ? अण्णद० तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स । एवं जाव० । १२. कालो दुविहो-जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक० पदेसुदी० केव० १ जह० उक्क० एगस० । अणुक्क० पदे० तिण्णि भंगा । जो सो सादि० सपज्जव० तस्स इमो णि सो—जह. अंतोमु०, उक्क० उवड्ढपो०परियढें । किसके होती है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध अन्यतरके होती है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ११. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी जघन्य प्रदेश उदोरणा किसके होती है ? अन्यतर सर्व संक्लिष्ट या तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट मिथ्यादष्टिके होती है। इसी प्रकार सब नारकी, सव तिर्यञ्च, सब मनुष्य और सामान्य देवोंसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मोहनीयकी जघन्य प्रदेश उदीरणा किसके होती है ? तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट अन्यतरके होती है। आनत कल्पसे लेकर नौ अवेयक तकके देवोंमें मोहनीयकी जघन्य प्रदेश उदीरणा किसके होती है ? तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होती है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मोहनीयकी जघन्य प्रदेश उदोरणा किसके होती है ? तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट अन्यतरके होती है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। १२. काल दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणाका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणाके तीन भंग हैं। उनमें जो सादि-सान्त भंग है उसका यह निर्देश है-जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल उपार्ध पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। विशेषार्थ–मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा क्षपकश्रेणिके दशवें गुणस्थानमें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष रहने पर एक समय तक होती है, इसलिए इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा जो अर्ध पुद्गल परिवर्तन नामवाले कालके आदिमें सम्यग्दर्शन प्राप्तकर क्रमसे उपशमश्रेणि पर आरोहण करके मोहनीयकी अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका प्रारम्भ करता है और उक्त कालके अन्तमें क्षपकश्रणि पर आरोहण कर
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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