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________________ १८६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । मणुसतिये मोह० उक्क० जह• उक्क० एगस०, अणुक० जह० एयस०, उक. सगढिदी। देवेसु णारयभंगो । एवं भवणादि जाव सव्वट्ठा त्ति । णवरि सगहिदी भाणिदव्या । एवं जाव० । $ १५. जह० पयदं । दुविहो णिदेसो -ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह. जह० पदेसुदी० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो। अजह० जह० एगस०, उक्क० अणंतकालमसंखेजा० । एवं तिरिक्खोघं । $ १६. आदेसेण णेरइय० मोह० जह० ओघं । अजह० जह० एगस०, उक्क. सगढिदी। एवं सव्वणेरइय० । णवरि अजह० जह० एयस०, उक्क० अप्पप्पणो सगहिदी । पंचिंदियतिरिक्खचउक्क-मणुसचउक्क-देवा भवणादि जाव सव्वट्ठा त्ति एवं उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है तथा अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। देवोंमें नारकियोंके समान भंग है । इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिये। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। विशेषार्थ—मनुष्यत्रिकमेंसे जो मनुष्य क्षपकश्रेणि पर आरोहण कर सूक्ष्मसाम्पराय होकर उसके काल में एक समय अधिक आवलिकाल शेष रहने पर मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा करता है उसके मात्र एक समय तक मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा होती है, इसलिए इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा जो मनुष्य उपशमश्रेणिसे उतर कर तथा एक समयके लिए सूक्ष्मसाम्पराय होकर मर कर द्वितीय समयमें देव हो जाता है उसके अनुत्कृष्ट प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय प्राप्त होनेसे वह उक्त काल प्रमाण कहा है। शेष सब कथन सुगम है। १५. जघन्य प्रदेश उदीरणाका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी जघन्य प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अजघन्य प्रदेश-उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। विशेषार्थ—मोहनीयकी जघन्य प्रदेश उदीरणा सर्व संक्लिष्ट या तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट जीवके होती है और इसका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए यहाँ ओघसे मोहनीयकी जघन्य प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है । शेष कथन सुगम है। १६. आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयकी जघन्य प्रदेश उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल ओघके समान है। अजघन्य प्रदेश उदीरणाका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण है। इसी प्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अजघन्य प्रदेश उदारणाका जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चचतुष्क, मनुष्यचतुष्क, सामान्य देव और भवनवासियोंसे
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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