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________________ १८२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ __४. जह० पयदं । दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह. अस्थि जह० पदेसुदीरणा । एवं चदुगदीसु । एवं जाव० ।। ५. सव्वुदीरणा-णोसव्वुदीरणा० दुविहो णिहेसो-ओषेण आदेसेण य ।। ओघेण सव्वं पदेसग्गमुदीरेमाणस्स सव्वुदीरणा । तदूर्ण णोसव्वुदीरणा । एवं जाव० । ६. उक्क०-अणुक्क० दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण सव्वुक्कस्सयं पदेसग्गमुदीरेमाणस्स उक्क०पदेसुदीरणा । तदूणमणुक्कस्सपदेसुदीर० । . एवं जाव० ! ७. जह०- अजह० दुवि० णिद्दे०-ओघ० आदेसे० । ओषे० सव्वजहण्णयं पदेसग्गमुदीरेमा० जह०पदेसुदी० । तदुवरिमजह०पदेसुदीर० । एवं जाव० । ६८. सादि-अणादि-धुव-अद्धवाणुगमेण दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क० जह० अजह० किं सादि०४ १ सादि-अद्धवा । अणुक्क० किं सादि०४ १ सादि-अणादि-धुव-अद्धवा० । आदेसेण रइय० मोह. उक० अणुक० $४. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मोहनीयकी जघन्य प्रदेश-उदीरणा है। इसी प्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक कथन करना चाहिए। ५. सर्व प्रदेश-उदीरणा और नोसर्व प्रदेश-उदीरणाकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे सर्वप्रदेशाप्रकी उदीरणा करनेवालेके सर्व प्रदेश-उदीरणा होती है और उससे कम प्रदेशाप्रकी उदीरणा करनेवालेके नोसर्व प्रदेश-उदीरणा होती है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ६. उत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणा और अनुत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणाकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है ओघ और आदेश । ओघसे सबसे उत्कृष्ट प्रदेशाग्रकी उदीरणा करनेवालेके उत्कृष्ट प्रदेशउदीरणा होती है तथा उससे कम प्रदेशाग्रकी उदीरणा करनेवालेकी अनुत्कृष्ट प्रदेश-उदीरणा होती है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ७. जघन्य प्रदेश-उदीरणा और अजघन्य प्रदेश-उदीरणा ओघ और आदेशके भेदसे दो प्रकारकी है । ओघसे सबसे जघन्य प्रदेशाप्रकी उदीरणा करनेवालेके जघन्य प्रदेश-उदीरणा होती है और उससे अधिक प्रदेशाप्रकी उदीरणा करनेवालेके अजघन्य प्रदेश-उदीरणा होती है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ८. सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुवानुगमको अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओष और आदेश । ओघसे मोहनीयकी उत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य प्रदेश उदीरणा क्या सादि है, क्या अनादि है, क्या ध्रुव है या क्या अध्रुव है ? सादि और अध्रव है। अनुत्कृष्ट प्रदेशउदीरणा क्या सादि है, क्या अनादि है, क्या ध्रुव है या क्या अध्रुव है ? सादि, अनादि, ध्रव और अध्रुव है। आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयको उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य प्रदेश-उदीरणा क्या सादि है, क्यां अनादि है, क्या ध्रव है या क्या अध्रुव है ? सादि
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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