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________________ गा० ६२ ] मूलपयडिपदेसउदीरणाए समुक्कित्तणा * पदेसुदीरणा दुविहा- मूलपयडिपदेसुदीरणा उत्तरपयडिपदेसुदीरणा च । $ १. अणुभागुदीरणाविहासणाणंतरमेतो गाहासुत्तसूचिदा पदेसुदीरणा विहासियव्वा । सा वुण मूलुत्तरपय डिपदेसुदीरणाभेदेण दुविहा चेव होइ, तत्तो वदिरित्तपदे सुदीरणाणुवलंभादो । एवं च दुवियप्पा पदेसुदीरणा एत्थाहिकया त्ति एसो एदस्स सुत्तस्स भावत्थो । संपहि 'जहा उद्देसो तहा णिसो' त्ति णायमवलंबिय मूलपय डिपदेसुदीरणा चैव ताव समुत्तिणादि - अप्पा बहुअपज्जतेहि अणियोगद्दारेहिं विहासियच्या ति पदुप्पायणमुत्तरं सुत्तमाह १८१ * मूलपयडिपदेसुदीरणं मग्गियूण । $ २. एदेण सुत्तावयवेण समप्पिदमूलपयडिपदेसुदीरणमुच्चारणाइरियोवदेसबलेण पवंचयिस्साम । तं जहा – मूलपयडिपदेसुदीरणाए तत्थेमाणि तेवीसमणिओगदाराणि - समुत्तिणा जाव अप्पा बहुए ति भुज० - पदणिक्खेव - वडिउदीरणा चेदि । $ ३. समुत्तिणा दुविहा -- जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिद्देसोओघेण आदेसेण य । ओघेण मोहणी ० अत्थि उक्कस्सिया पदेसुदीरणा । एवं चदुगदीसु । एवं जाव * प्रदेश उदीरणा दो प्रकारकी है— मूल प्रकृति प्रदेश - उदीरणा और उत्तर प्रकृति प्रदेश - उदीरणा । $ १. अनुभाग उदीरणाके विशेष व्याख्यानके अनन्तर आगे गाथासूत्र के द्वारा सूचित हुई प्रदेश उदीरणाका व्याख्यान करना चाहिए । किन्तु वह मूल प्रकृति प्रदेश उदीरणा और उत्तर प्रकृति प्रदेश - उदीरणाके भेदसे दो प्रकारकी ही होती है, क्योंकि उनसे अतिरिक्त प्रदेशउदीरणा नहीं पाई जाती है। इस प्रकार दो प्रकारकी प्रदेश - उदीरणा यहाँपर अधिकृत है इस . प्रकार यह इस सूत्र का भावार्थ है । अब 'जिस प्रकारका उद्देश्य हो उस प्रकारका निर्देश किया जाता है' इस न्यायका अवलम्बन लेकर सर्व प्रथम समुत्कीर्तनासे लेकर अल्पबहुत्व पर्यन्त अनुयोगद्वारोंके आश्रयसे मूल प्रकृति प्रदेश - उदीरणाका ही व्याख्यान करना चाहिए यह कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं * मूल प्रकृति प्रदेश - उदीरणाका अनुमार्गण कर । $ २. इस सूत्रावयवके द्वारा समर्पित मूल प्रकृति प्रदेश - उदीरणाका उच्चारणाचार्य के उपदेशके बलसे व्याख्यान करेंगे । यथा - मूल प्रकृति प्रदेश - उदीरणामें वहाँ ये तेईस अनुयोगद्वार होते हैं - समुत्कीर्तनासे लेकर अल्पबहुत्व तक तथा भुजगार, पदनिक्षेप और वृद्धि उदीरणा । $ ३. समुत्कीर्तना दो प्रकारकी है— जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश - उदीरणा है। इसी प्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । १. आ०प्रतौ पवचयं वत्तयिस्सामो इति पाठः । -
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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