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________________ १८० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे. [ वैदगो अट्टि० असंखे०‍ ०गुणा । अनंतभागवड्डि - हाणि० असंखे० गुणा । असंखे० भागवड्डि-हाणि० असंखे० गुणा । संखे ० भागवड्ढि - हाणि० संखे० गुणा । संखे० गुणवड्ढि - हाणि० संखे० गुणा । असंखे०गुणवड्ढि - हाणि० असंखे० गुणा । अनंतगुणहाणि० असंखे० गुणा । अनंत गुणवडि० विसेसाहिया । बारसक० -- छण्णोक० सव्वत्थोवा अवट्टि ० । अनंतभागवड्डि- हाणि० असंखे० गुणा असंखे० भागवड्डि- हाणि ० असंखे० गुणा । संखे० भागवड्डि- हाणि० संखे० गुणा । संखे० गुणवड्डि- हाणि ० संखे० गुणा । असंखे० गुणवड्डि-हाणि० असंखे० गुणा । अवत्तव्त्र ० असंखेज्जगुणा । अनंतगुणहाणि० असंखे० गुणा । अनंत गुणवड्डि० विसेसा० । एवं पुरिसवेद० । णवरि अवत्त० णत्थि । एवं सव्वडे । वरि संखेजगुणं कादव्वं । एवं जाव० । । एवमप्पाबहुअं समत्तं । तदो वड्ढि समत्ता । 1 ४८६. एत्थ द्वाणपरूवणे कीरमाणे अट्ठावीसंपयडीणमुत्तरपयडिअणुभागविहत्तिभंगो । तदो 'कोव के य अणुभागे' त्ति पदस्स अत्थो समत्तो । उनसे असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यात भागहानि अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्या भागवृद्धि और संख्यातभागहानि अनुभाग के उदीरक जीव सख्यातगुणे हैं । उनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानि अनुभागके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यात गुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानि अनुभाग के उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अनन्तगुणहानि अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अनन्तगुणवृद्धि अनुभागके उदीरक जीव विशेष अधिक हैं । बारह कषाय और छह नोकषायोंके अवस्थित अनुभागके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानि अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यातभागहानि अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यात भागहानि अनुभागके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानि अनुभागके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानि अनुभागके उदीरक जीव | असंख्यातगुणे हैं। उनसे अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अनन्तगुणहानि अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अनन्तगुणवृद्धि अनुभागके उदीरक जीव विशेष अधिक हैं। इसी प्रकार पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसकी अवक्तव्य अनुभाग उदीरणा नहीं है । इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि असंख्यातगणेके स्थानमें संख्यातगुणा करना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । इस प्रकार अल्पबहुत्व समाप्त होनेपर वृद्धि समाप्त हुई। $ ४८६. यहाँ पर स्थानों का कथन करनेपर अट्ठाईस प्रकृतियों सम्बन्धी उत्तर प्रकृति अनुभागविभक्तिके समान भंग है । इस प्रकार 'को व के य अणुभागे' इस पदका अर्थ समाप्त हुआ ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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