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________________ गा० ६२ ] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणा वड्डीए णाणाजीवेहिं अंतरानुगमो १७५ ९४७ ३. अणुदिसादि सव्वट्ठा त्ति सव्वपय० अणंतगुणवड्डि - हाणी० सव्वद्धा । सेसपदा ० ० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असं० भागो । णवरि सम्म० अवत्त० जह० एस०, उक्क० संखेज समया । णवरि सव्वट्ठे सव्वपय० अवट्ठि ० - अवत्त० जह० एयस०, उक्क संखेजा समया । एवं जाव० । ४७४ अंतराणु० दुवो णिद्देसो- ओषेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०सोलसक० - सत्तणोक० सव्वपदा० णत्थि अंतरं । णवरि मिच्छ० अवत्त० जह० एयस०, उक्क० सत्त रादिंदियाणि । ण स ० अवत्त० जह० एयस०, उक्क० चउवीसमुहुंत्तं । सम्म० पंचवड्डि- हाणि ० --अवडि० जह० एयस०, उक्क० असंखेजा लोगा । अवत्त ० जह० एस ०, उक्क० सत्त रार्दिदियाणि । अनंतगुणवड्डि-हाणी० णत्थि अंतरं । एवमित्थिवेद - पुरिसवेद० । णवरि अवत्त० जह० एगस०, उक्क० चउवीसमुहुतं । एवं सम्मामि० । णवरि अनंतगुणवड्डि- हाणि-अवत्त० जह० एगस०, उक्क० पलिदो असंखे ० भागो ! ० $ ४७५. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० पंचवड्ढि - हाणि - अवट्ठि ० जह० एयस०, $ ४७३. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवोंमें सब प्रकृतियोंके अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानि अनुभागके उदीरकोंका काल सर्वदा है। शेष पद अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वके अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । इतनी विशेषता है कि सर्वार्थसिद्धिमें सब प्रकृतियोंके अवस्थित और अवक्तव्य अनुभाग के उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । $ ४७४ अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघ मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके सब पद अनुभागके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । इतनी विशेषता है कि मिध्यात्वके अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सात रात्रि-दिन है । नपुंसकवेदके अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल चौबीस मुहूर्त है । सम्यक्त्वके पाँच वृद्धि, पाँच हानि और अवस्थित अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सात रात्रि-दिन है । अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानि अनुभागके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । इसी प्रकार स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल चौबीस मुहूर्त है । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अनन्तगुणवृद्धि, अनन्तगुणहानि और अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । $ ४७५. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वके पाँच वृद्धि, पाँच हानि और अवस्थित अनु
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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