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________________ १७४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वैदगो ७ एवं चैव । णवरि अनंतगुणवड्डि-हाणी० जह० एयस०, उक्क० पलिदो • असंखे ० भागो । I ० एवं तिरिक्खा ० । ४७१. सव्वणिरय - सव्वपंचिदियतिरिक्ख- देवा जाव णवगेवजा त्ति सम्मामि० ओषं । सेसपय • अनंतगुणवड्डि-हाणी० सव्वद्धा । सेसपदा० जह० एयस ०, आवलि • असंखे ० भागो । 1 उक० ४७२. मणुसा० पंचिंदियतिरिक्खभंगो | णवरि मिच्छ०- णवं स० अवत्त० सम्म० - इत्थि वे० - पुरिस० अवट्ठि ० - अवत्त० जह० एयंस ०, उक्क० संखेजा समया । सम्मामि० अणंतगुणवडि-हाणी० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० | पंचवड्डि-हाणी ० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । अवट्ठि ० - अवत्त० जह० एयस०, उक्क० संखे० समया । एवं मणुसपञ्ज० - मणुसिणी० । णवरि मिच्छ० - सोलसक०सत्तणोक० अवट्ठि ० – अवत्त० जह० एगस०, उक्क० संखे ० समया । णवरि पज० इत्थवेदो णत्थि । मणुसिणीसु पुरिस०- णव स० णत्थि । मणुसअपञ्ज० मिच्छ०सोलसक० - सत्तणोक० अणंतगुणवड्डि-हाणी० जह० एयस ०, उक्क० पलिदो ० असंखे० भागो | सेसपदा० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । और उत्कृष्ट का पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार सामान्य तिर्यों में जानना चाहिए । $ ४७१. सब नारकी, सब पचेन्द्रिय तिर्यन और सामान्य देवोंसे लेकर नौ मैवेयक तकके देवोंमें सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानि अनुभागके उदीरकोंका काल सर्वदा है। शेष पद अनुभागके उदीरकों का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । $ ४७२. मनुष्यों में पचेन्द्रिय तिर्यश्नोंके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका तथा सम्यक्त्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके अवस्थित और अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । सम्यग्मिथ्यात्व के अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानि अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । पाँच वृद्धि और पाँच हानि अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अवस्थित और अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मिध्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके अवस्थित और अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकों में स्त्रीवेद नहीं है तथा मनुष्यिनियों में पुरुपवेद और नपुंसक वेद नहीं है । मनुष्य अपर्याप्तकों में मिध्यात्व, सोलह कषाय और सात ravira अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानि अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। शेष पद- अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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