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________________ १७६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ 01 उक्क० असंखेना लोगा । अवत्त० ओघं । सेसपदा० णत्थि अंतरं । एवं सोलसक० सत्तणोक० । णवरि अवत्त० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । णवरि णवंस० अवत्त० णत्थि । सम्म० - सम्मामि० ओघं । एवं सव्वणिरय० । $ ४७६. तिरिक्खा • ओघं । पंचि०तिरिक्खतिये मिच्छ० - सम्म० - सम्मामि ०सोलसक० - छण्णोक० णारयभंगो । तिण्णिवेदा० मिच्छत्तभंगो । णवरि अवत्त० ओघं । पंत इत्थवेदो णत्थि । जोणिणीसु पुरिस०- णपुंस० णत्थि । इत्थिवेद० अवत्त ० . णत्थि । पंचि०तिरिक्खअपज० मिच्छ० णवुंस० पंचवड्डि- हाणि-अवट्ठि० जह० एस०, उक्क० असंखेजा लोगा । सेसपदाणं णत्थि अंतरं । एवं सोलसक० - छण्णोक० । वरि अवत्त० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । $ ४७७, मणुसतिये पंचि ० तिरिक्खतियभंगो | णवरि मणुसिणीसु इत्थिवेद ० अवत्त० जह० एगस०, उक्क० वासपुधत्तं । मणुसअपज० मिच्छ० - सोलसक० भागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका भंग ओघके समान है। शेष पद- अनुभाग उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । इसी प्रकार सोलह कषाय और सात नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । इतनी विशेषता और है कि इनमें नपुंसकवेदकी अवक्तव्य उदीरणा नहीं है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है । इसी प्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए । $ ४७६. तिर्यञ्चोंमें ओघके समान भंग है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें मिध्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकषायोंका भंग नारकियोंके समान है । तीन वेदोंका भंग मिध्यात्वके समान है। इतनी विशेषता है कि इसके अवक्तव्य अनुभाग उदीरकोंका भंग ओघके समान है। पर्याप्तकों में स्त्रीवेद नहीं है तथा योनिनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसक वेद नहीं है । तथा योनिनियों में स्त्रीवेदकी अवक्तव्य उदीरणा नहीं है । पश्चेन्द्रिय विर्यच अपर्याप्तकों में मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके पाँच वृद्धि, पाँच हानि और अवस्थित अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है। शेष पद - उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है। इसी प्रकार सोलह कषाय और छह नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । $ ४७७. मनुष्यत्रिमें पचेन्द्रिय तिर्यवत्रिकके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि मनुष्यिनियों में स्त्रीवेदके अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है। और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्वप्रमाण है । मनुष्य अपर्याप्तकों में मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायों के पाँच वृद्धि, पाँच हानि और अवस्थित अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है। शेष पद अनुभाग १. ता०प्रतौ णवरि जह० इति पाठः ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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