SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० ६२ ] उत्तरपयडिअणुभाग उदीरणाए वड्ढोए एयजीवेण अंतरं १६७ जह० एयस०, एगस उक्क० तेत्तीस सागरो० सादिरेयाणि । एवमरदि-सोग० । णवरि अनंतगुणवड्डि- हाणि० उक्क० छम्मासं । इत्थिवेद - पुरिसवेद० छवड्डि- हाणि - अवडि० जह० अवत्त० जह० अंतोमु०, उक्क० सव्वेसिमणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । $ ४५५. आदेसेण णेरइय० मिच्छ०- सम्म० - सम्मामि ० - अनंताणु ०४ - हस्सरदि० छवड्ढि - हाणि - अवडि० जह० एस ०, अवत्त० जह० अंतोमु०, उक्क० सव्वेसिं तेत्तीस सागरोवमाणि देणाणि । एवमरदि-सोग० । णवरि अनंतगुणवड्डि- हाणि० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । एवं बारसक० - भय - दुर्गुछ० । णवरि अवत्त० जह० उक्क० अंतोमु० । एवं ण स० । णवरि अवत्त० णत्थि । एवं सत्तमाए । पढमादि जाव छट्टि त्ति एवं चैव । णवरि' सगट्ठिदी देभ्रूणा । हस्स - रदि - अरदि - सोग० भयभंगो । 1 $ ४५६. तिरिक्खेसु मिच्छ० - अनंताणु ०४ ओघं । णवरि अणंतगुणवड्डि-हाणी० जह० एस ०, उक्क० तिरिण पलिदो० देणाणि । अवत्त० भुज०भंगो । सम्म०वृद्धि अनन्तगुणहानि और अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तरकाल दोका एक समय और अवक्तव्यपदका अन्तर्मुहूर्त है तथा सबका उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक तेतीस सागरोपम है । इसी प्रकार अरति और शोककी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनकी अन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानिका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी छह वृद्धि, छह हानि और अवस्थित पदका जघन्य अन्तरकाल एक समय और अवक्तव्य पदका अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्तकाल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनोंके बराबर है । विशेषार्थ — पहले भुजगार अनुयोगद्वार में सब प्रकृतियोंके भुजगारादि पदोंके अन्तरकालका स्पष्टीकरण कर आये हैं । उसे ध्यानमें रखकर यहाँ स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए । समझमें आने लायक होनेसे यहाँ अलगसे स्पष्टीकरण नहीं किया है । ܕܤ $ ४५५. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धीचतुष्क, हास्य और रतिकी छह वृद्धि, छह हानि और अवस्थित पदका जघन्य अन्तरकाल एक समय है, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागरोपम है । इसी प्रकार अरति और शोककी अपेक्षा जाना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानिका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्य पदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार नपुंसकवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि यहाँ इसका अवक्तव्य पद नहीं है । इसी प्रकार सातवीं पृथिवीनें जानना चाहिए। पहली पृथिवीसे लेकर छटी पृथिवी तक इसी प्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए । तथा इनमें हास्य, रति, अरति और शोकका भंग भयके समान है। $ ४५६. तिर्यों में मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग ओघ के समान है । इतनी विशेषता है कि अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानिका जघन्य अन्तरकाल एक समय १. आ०प्रतौ सत्तमाए । एवं पढमादि जाव छट्ठि त्ति । णवरि इति पाठः ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy