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________________ १६६ जंयधबलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ जाओ पयडीओ उदीरिजंति तासि जाणि पदाणि अत्थि तेसिमोघं । एवं जाव० । $ ४५४. अंतराणुगमेण दुविहो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०अनंता ०४ पंचवड - पंचहाणि - अवट्टि० जह० एगस ०, उक्क० असंखेज्जा लोगा । अनंत गुणवडि-हाणी० जह० एयस०, उक्क० वेछावट्टिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । अवत० भुजगारभंगो । सम्म० - सम्मामि० छवड्डि- हाणि - अवंट्ठि० जह० एयस०, अवत्त० जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० उवडपोग्गलपरियङ्कं । अट्ठक० पंचवढि - हाणि - अवट्ठि ० जह० एस ०, उक्क० असंखेजा लोगा । अनंतगुणवड्डि- हाणि - अवत्त० जह० एस ० अंतोमु०, उक्क० पुव्वकोडी देखणा । चदुसंजल० - भय - दुगंछ० एवं चैव । णवरि अनंत गुणवड्डि-हाण - अवत्त० जह० एस ०, उक्क० अंतोमु० । एवं णव स० । णवरि अनंत गुणवडि-हाणी० जह० एगस०, उक्क० सागरोवम सदपुंधत्तं । अवत्त० भुजगारभंगो | एवं हस्त-रदि० । णवरि अनंतगुणवड्डि- हाणि - अवत्त० जह० एस० अंतोमु०, करते हैं और उनके जो पद हैं उनका भंग ओघके समान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । विशेषार्थ — पाँच वृद्धियों और पाँच हानियोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होनेसे यहाँ सब प्रकृतियोंकी उक्त वृद्धियों और हानियोंका उक्त काल कहा है । सब प्रकृतियोंके अवस्थित पदका जघन्य काल समय और उत्कृष्ट काल सात-आठ समय बन जानेसे यह उक्तप्रमाण है । इनके अवक्तव्य पदका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय होनेसे उसे तत्प्रमाण बतलाया है। शेष कथन स्पष्ट ही है । $ ४५४. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश | ओघसे मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी पाँच वृद्धि, पाँच हानि और अवस्थितपदका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानिका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक दो छयासठ सागरोपम है । अवक्तव्यका भंग भुजगारके समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी छह वृद्धि, छह हानि और अवस्थित पदका जघन्य अन्तरकाल एक समय है, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तरकाल उपार्ध पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । आठ कषायोंकी पाँच वृद्धि, पाँच हानि और अवस्थितपदका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । अनन्त गुणवृद्धि, अनन्तगुणहानि और अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तरकाल एक समय और अवक्तव्यपदका अन्तर्मुहूर्त है तथा सबका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है। चार संज्वलन, भय और जुगुप्साका भंग इसी प्रकार है । इतनी विशेषता है कि इनकी अनन्तगुणवृद्धि, अनन्तगुणहानि और अवक्तव्यपदका जधन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । इसीप्रकार नपुंसकवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसकी अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानिका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सौ सागरोपमपृथक्त्वप्रमाण है। अवक्तव्य पदका भंग भुजगारके समान है। इसी प्रकार हास्य और रतिकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनकी अनन्तगुण
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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