SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ जयधवलाहदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ सव्वत्थोवा अवट्ठि० । अवत्त० असंखे०गुणा । अप्प० असंखे०गुणा । भुज० विसे० । एवं तिरिक्खा० । ६४१९. आदेसेण परइय० मिच्छ० सव्वत्योवा अवत्त । अवढि० असंखे०गुणा । सेसमोघं । सम्म०-सम्मामि०-सोलसक०-सत्तणोक० ओघं । णवरि णस० अवत्त० णत्थि । एवं सव्वणिरय० । ६४२०. पंचिंदियतिरिक्खतिये ओघं। णवरि मिच्छ०-णस० सव्वत्योका अवत्त । अवढि० असंखे०गुणा । सेसमोघं । गवरि पजत्तएसु इत्थिवेदो पत्थि । णस० पुरिसभंगो। जोणिणीसु पुरिसवेद-णस० णत्थि । इत्थिवेद० अवत्त० णत्थि। ६४२१. पंचिंदियतिरिक्खअपज०-मणुसअपज्ज० मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक० पंचिंदियतिरिक्खभंगो । णवरि मिच्छ०-णवुस० अवत्त० णत्थि । ९४२२. मणुसेसु मिच्छ-सोलसक०-सत्तणोक. पंचिंतिरि०भंगो। सम्म०सम्मामि०-इत्थिवेद-पुरिस० सव्वत्थोवा अवढि० । अवत्त० संखे० गुणा । अप्प. संखे०गुणा । भुज० विसे० । एवं मणुसपजत्त-मणुसिणीसु । णवरि संखे०गुणा । अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे भुजगार अनुभागके उदीरक जीव विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार तिर्यश्चोंमें जानना चाहिए। ४१९. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वके अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थित अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेष भंग ओघके समान है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंका भंग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें नपुंसकवेदके अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव नहीं है। इसी प्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए । ४२०. पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिकमें ओघके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थित अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुंणे हैं । शेष भंग. ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है। तथा इनमें नपुंसकवेदका भंग पुरुषवेदके समान है। योनिनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है । तथा इनमें स्त्रीवेदके अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव नहीं हैं। ४२१. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंका भंग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान है । इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव नहीं हैं। ४२२. मनुष्योंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंका भंग पझेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके अवस्थित अनुभागके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतर अनुभागके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगार अनुभागके उदीरक
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy