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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए भुजगारे अप्पाबहुअं १५३ जह० एगस०, उक. वासपुधत्तं । मणुसअपक्ष० सव्वपय० सव्वपदा० जह० एयस०, उक० पलिदो० असंखे०भागो । णवरि अवट्ठि० जह० एगस०, उक्क० असंखेजा लोगा। ६४१६. देवा० पंचिंदियतिरिक्खभंगो। णवरि गवुस० पत्थि । इत्थिवेदपुरिसवेद० अवत्त० णस्थि । एवं भवण०-वाणवें-जोदिसि०-सोहम्मीसा० । एवं सणकमारादि जाव गवगेवजा' ति । णवरि इत्थिवेदो पत्थि । अणुदिसादि सव्वद्वा ति सम्म०-पारसक०-सत्तणोक. आणदभंगो । णवरि सम्म० अवत्त० जह• एगस०, उक्क० वासपुधत्तं पलिदो० संखे०भागो । एवं जाव० । ४१७. भावाणुगमेण सव्वस्थ ओदइओ भावो । ६४१८. अप्पाबहुआणुगमेण दुविहो णिदेसो-ओषेण आदेसेण य । ओघेण, मिच्छ०-णस० सव्वत्थोवा अवत्त०अणुभागुदी०। अवडि. अणंतगुणा। अप्प. असंखे०गुणा। भुज० विसेसाहिया। सम्म०-सम्मामि०-सोलसक०-अदृणोक० उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके सब पदोंके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इतनी विशेषता है कि अवस्थित पदके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है। $ ४१६. देवोंमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि इनमें नपुंसकवेद नहीं है । तथा इनमें स्त्रीवेद और पुरुषवेदका अवक्तव्य पद नहीं है। इसी प्रकार भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी तथा सौधर्म और ऐशान कल्पके देवोंमें जानना चाहिए। इसी प्रकार सनत्कुमार कल्पसे लेकर नौ अवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद नहीं है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्त्व, बारह कषाय और सात नोकषायोंके सब पदोंके उदीरकोंके अन्तरकालका भंग आनत कल्पके समान है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वके अवक्तव्य पदके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल नौ अनुदिश तथा चार अनुत्तर विमानोंमें वर्षपृथक्त्वप्रमाण तथा सर्वार्थसिद्धिमें पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ६ ४१७. भावानुगमकी अपेक्षा सर्वत्र औदयिक भाव है। ६४१८. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे अवस्थित अनुभागके उदीरक जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे अल्पतर अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगार अनुभागके उदीरक जीव विशेष अधिक हैं। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और आठ नोकषायोंके अवस्थित अनुभागके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतर १. आ प्रतौ सणक्कुमारादि णवगेवजा इति पाठः।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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