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________________ गा० ६१] उत्तरपयरिअणुभागउदीरणाए भुजगारे अंतरं १५१ सव्वपय० भुज-अप्पद० जह० एयसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। सेसपदा० जह० एगस०, उक० श्रावलि० असंखे०भागो । १४११. अणुदिसादि सव्वष्ठा त्ति सव्वपय० भुज०-अप्प० सव्वद्धा । सेसपदा० जह एगस, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। णवरि सम्म० अवत्त० जह० एयस०, उक. संखेजा समया । बरि सवढे संखेजा समया । एवं जाव० । ४१२. अंतराणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०सोलसकसाय-सत्तणोक० सव्वपदाणं गत्थि अंतरं । णवरि मिच्छ० अवत्त० जह. एयस०, उक० सत्तरादिदियाणि । णqसय० अवत्त० जह० एयस०, चउवीसमुहुत्तं । सम्म० भुज०-अप्पद० णत्थि अंतरं । अवढि० जह० एगस०,उक्क० असंखेज्जा लोगा । अवत. मिच्छत्तभंगो। सम्मामि० भुज०-अप्प०-अवत्त० जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०मागो। अवढि० सम्मत्तभंगो । इत्थिवेद-पुरिस० सम्मत्तभंगो । काल सर्वदा है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। शेष पदोंके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ४११. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सब प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकोंका काल सर्वदा है । शेष पदोंके उदीरकोंका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट काल आव लिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वके अवक्तव्य पदके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। इतनी विशेषता है कि सर्वार्थसिद्धिमें आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कालके स्थानमें संख्यात समय काल है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ४१२. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके सब पदोंके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्य पदके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सात दिन-रात है । नपुंसकवेदके अवक्तव्य पदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल चौबीस मुहूर्त है। सम्यक्त्वके भजगार और अल्पतर पदके उदीरकों का अन्तरकाल नहीं है। अवस्थित पदके उदीरकों का जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । अवक्तव्य पदकें उदीरकों का भंग मिथ्यात्वके समान है। सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य पदके उदीरकों का जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थित पदके उदीरकों के अन्तरकालका भंग सम्यक्त्वके समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदके सब पदोंके उदीरकों के अन्तरकालका भंग सम्यक्त्वके समान १. ता०प्रतौ भागो । णवरि अणदिसादि इति पाठः । २. आ०प्रतौ अप्प० जह० एगस० सव्वद्धा इति पाठः।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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