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________________ १५० एवं तिरिक्खा ० । S $ ४०९. सव्वणिरय ० - सव्वपंचिदियतिरिक्ख० देवा भवणादि जाव णवगेवजा त्ति सम्मामि॰ ओघं । सेसपय० भुज० - अप्प० सव्वद्धा । सेसपदा० जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । ४१०. मणुसेसु पंचि०तिरिक्खभंगो । णवरि सिच्छ - णवुंस० अवत्त० सम्म०इत्थिवे ० - पुरिसवे० अवट्ठि - अवत्त० जह० एगस०, उक्क० संखेजा समया । सम्मामि ० भुज० - अप्पद० जह० एगस०, उक्क० अंतोसु० । सेस पदा० जह० एगस, उक्क० संखेजा समया । मणुसपज्ज० - मणुसिणी० सम्मामि० मणुसोघं । सेसपयडी० भुज० - अप्प० सव्वद्धा । सेसपदा० जह० एगस०, उक्क० संखेजा समया । मणुस अपज • जयधवलासहिदे कसायपाहुडे उत्कृष्टकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सोलह कषाय और छह नोकषायों के सब पदोंके उदीरकों काल सर्वदा है । इसी प्रकार तिर्यों में जानना चाहिए । · [ वेदगो ७ विशेषार्थ- — एक जीवकी अपेक्षा मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके अवक्तव्य पदके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अपने उपक्रम कालको देखते हुए ऐसे जीव यदि लगातार इन प्रकृतियोंकी अवक्तव्य उदीरणा करें तो कमसे कम एक समय तक और अधिकसे अधिक आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक ही अवक्तव्य उदीरणा करते हैं, इसलिए इनके अवक्तव्य पदके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्टकाल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। इनके शेष पदोंका काल सर्वदा है यह स्पष्ट ही है । सम्यक्त्व आदि चार प्रकृतियों के अवस्थित और अवक्तव्य पदके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा शेष दो पदोंके उदीरकोंका काल सर्वदा यथासम्भव उक्तप्रकारसे ही जान लेना चाहिए । सम्यग्मिथ्यात्व यह सान्तर मार्गणा है, इसलिए सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। शेष सब कथन स्पष्ट ही है । इसी न्याय से गतिमार्गणाके भेद-प्रभेदोंमें कालका विचार कर लेना चाहिए । $ ४०९. सब नारकी' सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यच, सामान्य देव और भवनवासियों से लेकर नौ ग्रैवेयक तकके देवोंमें सम्यग्मिथ्यात्वके सब पदोंके उदीरकोंका भंग ओघके समान है । शेष प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकोंका काल सर्वदा है। शेष पदोंके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। $ ४१०. मनुष्यों में पचेन्द्रिय तिर्योंके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि मिध्यात्व और नपुंसकवेदके अवक्तव्य पदके उदीरकोंका तथा सम्यक्त्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके अवस्थित और अवक्तव्य पदके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकोंका जघन्यकाल एक समय कृष्ट मुहूर्त है। शेष पदोंके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें सम्यग्मिथ्यात्वके सब पदों के उदीरकोंका भंग सामान्य मनुष्योंके समान है। शेष प्रकृतियोंके भुजगार और उल्पतर पदके ܝ ܝ
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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