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________________ १४२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [वेदगो७ ... ६ ३८६. पंचिंदियतिरि० अपज्ज०-मणुसअपज्ज० मिच्छ०-णस० तिण्णिपदा० जह० एगस, उक्क० अंतोमु० । एवं सोलसक०-छण्णोक० । णवरि अवत्त० जह उक्क० अंतोमु० । $ ३८७. मणुसतिये पंचिंदियतिरिक्खतियभंगो। णवरि पञ्चक्खाणचउक० भुज अप्प०-अवत्त० ओघं । मणुसिणीसु इत्थिवेद० अवत्त० जह० अंतोमु०, उक्क० पुवकोडिपुधत्तं । ३८८. देवेसु मिच्छ०-सम्मामि०-अणंताणु०४ तिण्णि पदा जह० एगसमओ अवत्त० जह० अंतोमु०, उक्क० एकत्तीसं सागरो० देसूणाणि । एवं सम्म० । पवरि अवढि० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि देसूणाणि । बारसक०-छण्णोक० भुज०-अप्प०-अवत्त० जह० एगस० अंतोमु०, उक्क. अंतोमु० । अवढि० सम्मत्तभंगो गवरि अरदि-सोग० भुज-अप्प०-अवत्त० जह० एगस० अंतोमु० हस्स-रदि अवत्त. जह० अंतोमु०, उक्क० सव्वेसिं छम्मासं । पुरिसवेद० तिण्णिपदा० बारसकसायभंगो। इथिवेद० भुज०-अप्प० जह० एगस०, उक्क० पणवण्णं पलिदो० वेसूणाणि । एवं ३८६. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके तीन पदोंके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार सोलह कषाय और छह नोकषायों की अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्य पदके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। $३८७. मनुष्यत्रिकमें पञ्चेन्द्रियतिर्यश्चत्रिकके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि इनमें प्रत्याख्यान चतुष्कके भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य पदके उदीरकका भंग ओघके समान है । मनुष्यिनियोंमें स्त्रीवेदके अवक्तव्य पदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटि पृथक्त्वप्रमाण हैं। ६३८८. देवों में मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्वात्व और अनन्तानुबन्धी के तीन पदों के उदीरक का जघन्य अन्तरकाल एक समय है, अवक्तव्य पदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम इकतीस सागरोपम है। इसी प्रकार सम्यक्त्वकी अपे जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके अवस्थित पदके उदीरक का जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागरोपम है। बारह कषाय और छह नोकषायों के भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य पदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल क्रमसे दो का एक समय और अवक्तव्य पदके उदीरकका अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूतं है। अवस्थित पदका भंग सम्यक्त्वके समान है। इतनी विशेषता है कि अरति और शोकके भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य पदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल क्रमसे दो का एक समय और अन्तिमका अन्तर्मुहूर्त है तथा हास्य और रतिके अवक्तव्य पदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल सबका छह महोना है। पुरुषवेदके तीन पदोंके उदीरकका भंग बारह कषायोंके समान है। स्त्रीवेदके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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