SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० ६२ ] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए भुजगारे भंगविचओ १४३ भवणादि णवगेवजाति । णवरि सगट्ठिदी देणा । इस्स -रदि - अरदि-सोगाणं भयदुर्गुछभंगो । सहस्सारे चदुणोक० देवोधं । णवरि अवट्टि० सगट्ठिदी देखणा । भवण ०वाणवे ० - जोदिसि ० - सोहम्मीसाण ० इत्थवेद० भुज० - अप्प० जह० एयस०, उक्क० अंतोमु० । अवट्ठि ० जह० एगस, उक्क० तिण्णि पलिदो० देनूणाणि पलिदो० सादिरे० प० सा० पणवण्णं पलिदो ० देखणाणि । उवरि इत्थवेदो णत्थि । ९ ३८९. अणुद्दिसादि सव्वट्ठा त्ति सम्म० भुज० - अप्प० जह० एस ०, उक्क० अंतोमुहुत्तं । अवट्ठि • देवोघं । अवत्त० णत्थि अंतरं । एवं पुरिसवे० । णवरि अवत्त ० णत्थि । एवं बारसक० - छण्णोक० । णवरि अवत्त० जहण्णुक्क० अंतोमु० । एवं जाव । ० $ ३९०. णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमेण दुविहो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० - णव स० भुज० - अप्प ० - अवट्ठि० णियमा अत्थि, सिया एदे च अवत्तव्यगोच, सिया एदे च अवत्तव्यगा च । सम्म०- - इत्थि वेद - पुरिसवेद० भुज० कम पचवन पल्योपम है । इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर नौग्रैवेयक तक के देवोंमें जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। हास्य, रति, अरति और शोकका भंग भय-जुगुप्साके समान है । सहस्रार कल्पमें चार नोकषायोंका भंग सामान्य देवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि यहाँ इनके अवस्थित पदके उदीरकका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है । भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी तथा धर्म-ऐशान कल्पके देवों में स्त्रीवेदके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल क्रमसे कुछ कम तीन पल्योपम, साधिक एक पयोपम, साधिक एक पल्योपम और कुछ कम पचवन पल्योपम है । ऊपरके देवोंमें स्त्रीवेद नहीं है। $ ३८९. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्त्वके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदके उदीरकका भंग सामान्य देवोंके समान है । अवक्तव्य पदके उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । इसी प्रकार पुरुषवेदके उदीरककी अपेक्षा अन्तरकाल जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसका अवक्तव्य पद नहीं हैं। इसी प्रकार बारह कषाय और छह नोकपायोंके उदीरककी अपेक्षा अन्तरकाल जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्य पदके उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । $ ३९०. नाना जीवोंका आश्रय कर भंग विचयानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके उदीरक जीव नियमसे हैं, कदाचित् ये नाना जीव हैं और एक अवक्तव्य पदका उदीरक जीव है, कदाचित् ये नाना जीव हैं और नाना अवक्तव्य पदके उदीरक जीव हैं । सम्यक्त्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरक जीव नियमसे हैं, शेष पदोंके उदीरक जीव भजनीय हैं। सम्यग्मिथ्यात्व के सब पदोंके उदीरक जीव भजनीय
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy