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________________ गा० ६२) उत्तरपयडिअणुभागउदोरणाए भुजगारे अंतरं १४१ पुरिसवेद० ओघं । अट्ठक०-छण्णोक० भुज०-अप्प०-अवत्त० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । अवढि० ओघं । णवंस० भुज०- अप्प० जह एगस, उक्क० पुवकोडिपुध० । अवढि०-अवत्त० ओघं । ६३८५. पंचिंदियतिरिक्खतिए मिच्छ० तिरिक्खोघं । णवरि अवढि-अवत्त० जह० एगस० अंतोमु०, उक० सगढिदी देसूणा । एवमणंताणु०४ । णवरि अवत्त० तिरिक्खोघं । एवं बारसक०-छण्णोक० । णवरि भुज-अप्प०-अवत्त० तिरिक्खोघं । सम्म०-सम्मामि० भुज-अप्प०-अवढि०-अवत्त० जह० एयस० अंतोमु०, उक्क० सगट्टिदी देसूणा । इत्थिवेद-पुरिसवेद० भुज०-अप्प०-अवत्त० जह० एगस० अंतोमु०, उक्क० पुव्वकोडिपुधत्तं । अवढि० जह० एगस०, उक्क. सगढिदी । णवूस० तिण्णिपदा० जह० एयस०, अवत्त० जह० अंतोमु०, उक्क० पुव्वकोडिषुधत्तं । णवरि पज० इत्थिवेदो णत्थि । जोणिणीसु पुरिसवे०-णवुस० णत्थि । भुज०-अप्प० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । इत्थिवेदस्स अवत्त० णत्थि । और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तीन पल्योपम है। अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और पुरुषवेदका भंग ओघके समान है। आठ कषाय और छह नोकषायोंके भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य पदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थित पदका भंग ओघके समान है। नपुंसकवेदके भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उन्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटि पृथक्त्वप्रमाण है। अवस्थित और अवक्तव्य पदका भंग ओघके समान है। $३८५. पञ्चेन्द्रिय तियश्चत्रिकमें मिथ्यात्वका भंग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। इतनी विशेषता है कि इसके अवस्थित और अवक्तव्यपदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल क्रमसे एक समय और अन्तरमुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । इसी.प्रकार अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके अवक्तव्यपदका भंग सामान्य तियञ्चोंके समान है। इसी प्रकार बारह कषाय और छह नोकषायोंकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्यपदके उदीरकका भंग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार, अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्यपदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल तीन का एक समय और अवक्तव्यपदका अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदके भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य पदके उदीरक का जघन्य अन्तरकाल दो का एक समय और अवक्तव्यपदका अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटि पृथक्त्वप्रमाण है । अवस्थितपदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। नपुंसकवेदके तीन पदोंके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय और अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटि पृथक्त्वप्रमाण है । इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है तथा योनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है। तथा योनियों में भुजगार और अल्पतरपदके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है । इनमें स्त्रीवेदका अवक्तव्य पद नहीं है।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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