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________________ १३८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [वेदगो७ $ ३८२. अंतराणु० दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० भुज०अप्प० जह० एगस०, उक्क० बेछावट्ठिसागरो० सादिरेयाणि । अवढि० जह० एयस०, उक्क० असंखेजा लोगा। अवत्त० जह० अंतोमु०, उक्क० उवड्डपोग्गलपरियढें । एवमगंताणु०४ । णवरि अवत्त० जह० अंतोमु०, उक्क० बेछावट्ठि० सागरोवमाणि सादिरेयाणि । अट्ठक० अवढि० जह० एगस०, उक्क० असंखेजा० लोगा । भुज०-अप्प०-अवत्त० जह० एगसमओ, अंतोमु०, उक्क० पुव्वकोडी देसूणा। चदुसंजल०-भय-दुगुछ० भुज०अप्प०-अवत्त० जह० एगस०-अंतोमु०, उक्क० अंतोमु० । अवढि० मिच्छत्तभंगो । इत्थिवेद-पुरिसवेद तिण्णिपदा० जह० एयस०, अवत्त० जह० अंतोमु०, उक्क० सव्वेसिमणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियड्डा । णस० भुज०-अप्प० जह० एयस०, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं । अवत्त० इत्थिवेदभंगो। अवढि० मिच्छत्तभंगो। हस्स-रदि० भुज-अप्प०-अवत्त० जह० एगस० अंतोमु०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि । अवढि० मिच्छत्तभंगो। अरदि-सोग० भुज०-अप्प० जह० एगस०, उक्क० $ ३८२. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्वके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक दो छयासठ सागरोपमप्रमाण है। अवस्थित पदके अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है। अवक्तव्य पदके अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल उपार्ध पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी चतुष्कको अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसके, प्रवक्तव्य उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक दो छयासठ सागरोपमप्रमाण है। आठ कषायोंके अवस्थित अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल क्रमसे दोका एक समय और और अन्तिमका अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है। चार संज्वलन, भय और जुगुप्साके भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य उदीरकका जघन्य अन्तरकाल क्रमसे दोका एक समय और अन्तिमका अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थित उदीरकका भंग मिथ्यात्वके समान है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदके तीन पदरूप अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है, अवक्तव्य अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तमुहूत हैं तथा सब उदरकका उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्तकाल हे जा असख्यात पुद्गल परिवर्तनोंके बराबर है। नपुंसकवेदके भुजगार और अल्पतर अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सौ सागरोपम पृथक्त्वप्रमाण है। इसके अवक्तव्यका भंग स्त्रीवेदके समान है। अवस्थित भंग मिथ्यात्वके समान है। हास्य और रतिके भुजगार अल्पतर उदीरकका जघन्य अन्तरकाल क्रमसे दोका एक समय और अन्तिमका अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक तेतीस सागरोपम है। अवस्थित भंग मिथ्यात्वके समान है। अरति और शोकके भुजगार और अल्पतर उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है। अवक्तव्य और अवस्थित
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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