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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए अप्पाबहुअं १३१ $ ३५६. कुदो ? सव्यघादिविट्ठाणियत्ताविसेसे वि पुव्विल्लादो एदस्स विसोहिपाहम्मेणाणंतगुणत्तसिद्धीए णिव्वाहमुवलंभादो । * अणंताणुबंधीणं जहण्णाणुभागुदीरणा अण्णदरा अणंतगुणा । $३५७. कुदो ? सव्वविसुद्धसंजमाहिमुहचरिमसमयमिच्छाइट्ठिम्मि पत्तजहण्णभावत्तादो। * मिच्छत्तस्स जहण्णाणुभागुदीरणा अणंतगुणा । ६३५८. किं कारणं ? उहयत्थ सामित्तविसेसाभावे वि पयडिविसेसेणेवाणंताणुबंधीणमणुभागादो मिच्छत्ताणुभागस्स सव्वकालमणंतगुणाहियसरूवेणावट्ठाणदंसणादो । * एवमोघजहण्णओ समत्तो। $ ३५९. सुगममेदं पयदत्थोवसंहारवकं । संपहि आदेसपरूवणमुत्तरसुत्तपबंधमाह * णिरयगदीए सब्वमंदाणुभागा सम्मत्तस्स जहण्णाणुभागुदीरणा । ६३६०. कुदो ? एगट्ठाणियसरूवत्तादो । * हस्सस्स जहण्णाणुभागउदीरणा अणंतगुणा । $ ३५६. क्योंकि अप्रत्याख्यनावरणीय और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य अनुभाग उदीरणामें सर्वघाति द्विस्थानीयपने की अपेक्षा यद्यपि कोई विशेषता नहीं है तो भी पूर्वकी अपेक्षा विशुद्धिके प्राधान्यवश इसके अनन्तगुणेपनेकी सिद्धि निर्बाधरूपसे पाई जाती है। * उससे अनन्तानुबन्धियोंकी अन्यतर जघन्य अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी है । $ ३५७. क्योंकि संयमके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती सर्वविशुद्ध मिथ्यादृष्टिके इसका जघन्यपना प्राप्त होता है। * उससे मिथ्यात्वकी जघन्य अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी है। ६३५८. क्योंकि उभयत्र स्वामित्व विशेषका अभाव होने पर भी प्रकृतिविशेषके कारण ही अनन्तानुबन्धियोंके अनुभागसे मिथ्यात्वका अनुभाग सर्वकाल अनन्तगुणे अधिकरूपसे अवस्थित देखा जाता है। * इस प्रकार ओघसे जघन्य स्वामित्व समाप्त हुआ। $ ३५९. प्रकृत अर्थका उपसंहार करनेवाला यह सूत्रवचन सुगम है । अब आदेशका कथन करनेके लिए आगेका सूत्रप्रबन्ध कहते हैं * नरकगतिमें सम्यक्त्वकी जघन्य अनुभाग उदीरणा सबसे अधिक मन्द अनुभागवाली है। $३६०. क्योंकि वह एक स्थानीयस्वरूप होती है। * उससे हास्यकी जघन्य अनुभाग उदीरणा अनन्तगुणी है । १. आप्रतौ उहयत्थ विसेसाभावे इति पाठः।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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