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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो७ __$३०४. इत्थिवेद० जह० अणुभागुदी० सम्म सिया अणंतगुणब्भ० । अट्ठक०'छण्णोक० सिया तं तु छट्ठाणप० । एवं दोण्हं वेदाणं । $३०५. हस्सस्स जह० उदी० सम्म० इथिवेदभंगो। अदुक०-तिण्णिवेदभय-दुगुंछा० सिया तं तु छट्ठाणप० । रदि० णि तं तु छट्ठाणप० । एवं रदीए । एवमरदि-सोगाणं। ३०६. भय० जह० उदीरेंतो सम्म० इत्थिवेदभंगो । अट्ठक०-अट्ठणोक० सिया तं तु छट्ठाणप० । एवं दुगुंछाए । ३०७. एवं पंचिंदियतिरिक्खतिये । गवरि पज० इत्थिवे. णत्थि । जोणिणीसु पुरिस०-णंस० णत्थि । इथिवेदो धुवो कायव्यो। अट्ठक०-सत्तणोक० जह० ३०४. स्त्रीवेदके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्वका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनभागकी उदीरणा करता है। आठ कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। इसी प्रकार दो वेदोंको मुख्यकर सनिकर्ष जानना चाहिए। $३०५. हास्यके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवालेके सम्यक्त्वका भंग स्त्रीवेदके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवालेके समान है। आठ कषाय, तीन वेद, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजन्य अनभागकी उदीरणा करता है । रतिका नियमसे उदीरक है । जो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार रतिको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार अरति और शोकको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। ___३०६. भयके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवालेके सम्यक्त्वका भंग श्रीवेदके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवालेके समान है। आठ कषाय और आठ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है । यदि अजघन्य अनभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। इसी प्रकार जुगुप्साको मुख्यकर समिकर्ष जानना चाहिए। ३०७. इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है । योनिनियों में पुरुषवेद और नपुंसकवेद नही है। इनमें स्त्रीवेद ध्रुव १. ता प्रतौ अणंतगुणन्म । कोषसंजलण णिय० तं तु छट्ठा । अटक० इति पाठः। २. आ प्रतौ छण्णोक० तं तु इति पाठः ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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