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________________ गा० ६२. ] उत्तरपयडिअणुभाग उदीरणाए सण्णियासो ११७ चैव । णवरि बारसक० - सत्तणोक० जह० उदी० सम्म० सिया तं तु छट्टाणप० । $ ३०१. सम्म० जह० उदी० बारसक० - छण्णोक० सिया तं तु छट्ठाणप० । णवुंस० निय० तं तु छट्ठाणप० । $ ३०२. तिरिक्खेसु मिच्छ० - सम्मामि० - अट्ठक० ओघं । सम्म० जह० उदी० बारसक० - छण्णोक० सिया अनंतगुण भ० । पुरिस० णिय० अनंतगुणन्भ० । $ ३०३. पञ्चक्खाणकोध० जह० उदी० सम्म० सिया अनंतगुणभ० । कोधसंजल० णिय० तं तु छट्टाणप० । णवणोक० सिया तं तु छड्डाणप० । एवं सत्तक ० । उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार जुगुप्साको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । इसी प्रकार पहली पृथिवीमें जानना चाहिए। दूसरीसे लेकर सातवीं तक इसी प्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है। कि इनमें बारह कषाय और सात नोकषायोंके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्वका कदाचित्_उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है । यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । $ ३०१. सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला बारह कपाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है । यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । नपुंसकवेदका नियमसे उदीरक है । जो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है । यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । $ ३०२. तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और आठ कषायोंको मुख्यकर सन्निकर्षका भंग ओघके समान है । सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला बारह कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । पुरुषवेदका नियमसे उदीरक है । जो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । $ ३०३. प्रत्याख्यान क्रोधके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्वका कदाचित् उदीरक है और कदाचित अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । क्रोधसंज्वलनका नियमसे उदीरक है। जो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है । यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। नौ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है । यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार सात कषायोंको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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