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________________ गा० ६२ ] उदी ० उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए सण्णिासो ० सम्म० सिया० तं तु छट्ठाणप० । ११९ $ ३०८. सम्म० जह० उदी० अट्ठक० - छण्णोक० सिया० तं तु छट्टाणप० । इत्थवे ० णि० तं तु छट्ठाणप० । $ ३०९. पंचि०तिरिक्खअपज ० - मणुसअपज० मिच्छ० जह० उदी० सोलसक० छण्णोक० सिया तं तु छडाणप० । णवुंस० णि० तं तु छट्ठाणप० । $ ३१०. अनंताणुकोध० जह० उदी० मिच्छ० तिण्डं कोधाणं णव स० णि० तं तु छट्टाणप० । छण्णोक० सिया तं तु छट्ठाणप० । एवं पण्णारसक० । करना चाहिए । तथा इनमें आठ कषाय और सात नोकषायोंके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्वका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है । यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । $ ३०८. सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला उक्त जीव आठ कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । स्त्रीवेदका नियमसे उदीरक है । जो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है । यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है । $ ३०९. पचेन्द्रिय तिर्यन अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मिध्यात्वके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जीव सोलह कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है । यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा षट् स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है । नपुंसकवेदका नियमसे उदीरक है । जो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है । यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है । $ ३१०. अनन्तानुबन्धी क्रोधके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जीव मिथ्यात्व, तीन क्रोध और नपुंसकवेदका नियमसे उदीरक है । जो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है । यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है। छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है । यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका उदीरक है । इसी प्रकार पन्द्रह कषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष कहना चाहिए ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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