SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ $ २८८. अपच्चक्खाणकोध० जह० उदी० सम्म ०- नवणोक० सिया० अनंतगुणभ० | दोन्हं कोधाणं णि० अनंतगुणन्भ० । एवं तिन्हं कसायाणं । ११४ $ २८९. पच्चक्खाणकोध० जह० उदी० सम्म० - णवणोक० सिया० अनंतगुणमहिया | कोधसंजल० णिय० अणंतगुणन्भ० । एवं तिण्डं क० । $ २९०. कोधसंजण० जह० अणुभागमुदी० सेसाण मणुदीरगो । एवं तिन्हं संजलणाणं । $ २९१ . इत्थवेद० जह० उदी० चदुसंजल० सिया० अनंतगुणन्भ० । एवं दो वेदा । $ २९२. हस्तास्स जह० उदी० इत्थवेद - पुरिसवेद - णवुंसवे ० - चदुसंजल० सिया० अनंतगुणभ० । रदि० णिय० तं तु छट्टाणप० । भय - दुर्गुछ० सिया० तं तु $ २८८. अप्रत्याख्यान क्रोधके जघन्य अनुभागको उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्व और कषायका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। दो क्रोधोंका नियमसे उदीरक है, जो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजधन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार अप्रत्याख्यान मानादि तीनको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । $ २८९. प्रत्याख्यान क्रोधके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्व और Sataraषायों का कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो जघन्य - की अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। क्रोधसंज्वलनका नियमसे उदीरक है जो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार प्रत्याख्यान मानादि तीन कषायोंको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । $ २९०. क्रोधसंज्वलनके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला शेष सब प्रकृतियोंका अनुदीरक है। इसी प्रकार तीनों संज्वलनोंको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । $ २९१. स्त्रीवेदके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला चार संज्वलनका कदाचित् aate है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकीं उदीरणा करता है । इसी प्रकार दो वेदोंको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । $ २९२. हास्यके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसक - वेद और चार संज्वलनका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक हैं तो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । रतिका नियमसे उदीरक है । जो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है | यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अदीरक है | यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीर है यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। इसी प्रकार रतिको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy