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________________ गा०६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए सण्णियासो छट्ठाणप० । एवं रदिए। एवमरदि-सोगाणं । $ २९३. भय० जह० उदी० पंचणोक० सिया० तं तु छट्ठाणप० । चदुसंजल०तिण्णिवे. सिया अणंतगुणब्भ० । एवं दुगुंछा० ।। $ २९४. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० जह० उदी० सोलसक०-छण्णोक० सिया अणंतगुणब्भ० । णवूस० णिय० अणंतगुणब्भ० । $ २९५. सम्म० जह० उदी. बारसक०-छण्णोक० सिया अणंतगुणब्भ० । णवंस० णिय. अणंतगुणब्भ० । एवं सम्मामि० । $२९६. अणंताणु०कोध० जह० उदी० तिण्हं कोधाणं णवुस० णिय० अणंतगुणब्म० । छण्णोक० सिया अणंतगुणब्भ० । एवं तिण्हं क० । २९७. अपचक्खाणकोध० जह• उदी० सम्म० सिया० अणंतगुणभ० । तथा इसी प्रकार अरति और शोकको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। ३२९३. भयके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला पाँच नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। चार संज्वलन और तीन वेदोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। इसी प्रकार जुगुप्साको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। २९४. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला सोलह कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । नपुसकवेदका नियमसे उदीरक है। जो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। . २९५. सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेबाला बारह कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित उदीरक है और कदाचित अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। नपुंसकवेदका नियमसे उदीरक है जो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। २९६. अनन्तानुवन्धी क्रोधके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला तीन क्रोध और नपुंसकवेदका नियमसे उदीरक है। जो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायों को मुख्यकर सन्निकर्ष जान लेना चाहिए। ६२९७. अप्रत्याख्यान क्रोधके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्वका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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