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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए सण्णियासो ११३ . बारसक०-पंचणोक० सिया० तं तु छट्ठाणपदिदा० । एवं दुगुंछा० । एवं जाव० । $ २८५. जह० पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० जह० उदीरतो अणंताणु०४ सिया० तं तु छट्ठाणप० । बारसक०-णवणोक० सिया० अणंतगुणब्भहिया० । $२८६. सम्म० जह० उदीरेंतो बारसक०-णवणोक० सिया० अणंतगुणब्भ० । एवं सम्मामि० । २८७. अणंताणु०कोध० जह० उदीरेंतो० णि०.तं तु छट्ठाणप० । तिण्हं कोधाणं णिय० अणंतगुणब्भ० । णवणोक० सिया अणंतगुणब्भ० । एवं तिण्हं कसायाणं । नियमसे उदीरक है । जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। बारह कषाय और पाँच नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार जुगुप्साको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। २८५ जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला अनन्तानुबन्धी चतुष्कका कदाचित् उदोरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभाग उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। बारह कषाय और नौ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदोरक है । यदि उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। २८६. सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला जीव बारह कषाय और नौ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्यको अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदोरणा करता है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। ६२८७. अनन्तानुबन्धी क्रोधके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला मिथ्यात्वका नियमसे उदीरक है । जो जघन्य अनुभागका उदीरक है या अजघन्य अनुभागका उदीरक है। यदि अजघन्य अनुभागका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। तीन क्रोधोंका नियमसे उदीरक है। जो जघन्यकी अपेक्षा अनन्त-. गुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। नौ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षाअनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार तीन क्रोधोंको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । १. आ०प्रतौ अणंतगुणहीणं इति पाठः । १५
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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