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________________ ११२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ वुंस० णत्थि | सणकुमारादि जाव णवगेवजा त्ति एवं चेव । णवरि पुरिसवेदो ध्रुवो काव्वो । $ २८१. अणुद्दिसादि सव्वट्टा त्ति सम्म० उक० उदी० बारसक० - छण्णोक० सिया तं तु छट्ठाणप० । पुरिसवेद० णि० तं तु छट्टाणप० । एवं पुरिसवेद० । $ २८२. अपच्चक्खाणकोध० उक्क० उदी० सम्म० दोन्हं कोधाणं पुरिसवे० णि० तं तु छट्टाणपदिदं । छण्णोक० सिया० तं तु छट्ठाणप० । एवमेक्कारसक० । $ २८३. हस्सस्स उक्क० उदी० सम्म० -! - पुरिसवेद - रदि० णि० तं तु छडाणप० । बारसक० - भय - दुगुंछ० सिया तं तु छट्टाणप० । एवं रदीए । एवमरदि - सोगाणं | - $ २८४. भय० उक्क० उदीरेंतो सम्म० - पुरिसवे० णि० तं तु छट्टाणप० । कल्पसे लेकर नौ प्रवेयक तकके देवोंमें इसी प्रकार है । इतनी विशेषता है कि इनमें पुरुषवेद ध्रुव करना चाहिए । $ २८१. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्त्वके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला बारह कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदर है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । पुरुषवेदका नियमसे उदीरक है । जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृटकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार पुरुषवेदको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । $ २८२. अप्रत्याख्यान क्रोधके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्व, दो क्रोध और पुरुषवेदका नियमसे उदीरक है । जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार ग्यारह कषायको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । २८३. हास्यके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्व, पुरुषवेद और रतिका नियमसे उदीरक है । जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभाँगकी उदीरणा करता है । बारह कषाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदोरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थान - पतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार रतिको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार अरति और शोकको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। २८४. भयके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्व और पुरुषवेदका
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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