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________________ उत्तरप गा० ६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए सण्णियासो १११ एवमरदि-सोगाणं । २७७. भय० उक्क. उदीरेंतो० मिच्छ०-णस० णि. तं तु छट्ठाणप० । सोलसक०-पंचणोक० सिया० तं तु छट्ठाणप० । एवं दुगुंछाए। २७८. मणुसतिये पंचिंदियतिरिक्खतियभंगो। देवेसु तिरिक्खोघं । णवरि णवुस० णत्थि । इत्थिवेद० उक्क० अणुभागमुदी० मिच्छ० णि तं तु छट्ठाणप० । सोलसक०-चदुणोक० सिया० छट्ठाणप० । हस्स-रदि० सिया० अणंतगुणहीणं । $ २७९. हस्सस्स उक्क० उदी० मिच्छ०-पुरिसवे०-रदि० णि तं तु छट्ठाणप० । सोलसक०-भय-दुगुंछ० सिया तं तु छट्ठाणप० । एवं रदीए ।। २८०. भवण-वाणवें०-जोदिसि०-सोहम्मीसाण. तिरिक्खोघं । णवरि चाहिए । तथा इसी प्रकार अरति और शोकको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । ६२७७. भयके उत्कृष्ट अनुभागका उदोरक जीव मिथ्यात्व और नपुसकबेदका नियमसे उदीरक है। जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । सोलह कषाय और पाँच नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनु त्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। इसी प्रकार जुगुप्साको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। २७८. मनुष्यत्रिकमें पश्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकके समान भंग है । देवोंमें सामान्य तिर्यश्चोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि इनमें नपुंसकवेद नहीं है । स्त्रीवेदके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला मिथ्यात्वका नियमसे उदीरक है । जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनत्कष्ट अनभागकी उदीरणा करता है। सोलह कषाय और चार नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। हास्य और रतिका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट की अपेक्षा अनन्तगुणहीन अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। ६२७९. हास्यके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला मिथ्यात्व, पुरुषवेद और रतिका नियमसे उदीरक है। जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागको उदीरणा करता है । सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। इसी प्रकार रतिको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। २८०. भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी तथा सौधर्म-ऐशान कल्पके देवोंमें सामान्य विर्यश्चोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि इनमें नपुंसकवेद नहीं है। सनत्कुमार
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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