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________________ ११० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो७ २७३. पंचि०तिरिक्खअपज०-मणुसअपज्ज० मिच्छ० उक्क० अणुभागमुदी० सोलसक०-छण्णोक० सिया तं तु छट्ठाणप० । णवूस० णि तं तु छट्ठाणप० । २७४. अणंताणु०कोध० उक्क० अणुभागमुदी० मिच्छ० णqस० तिण्हं कोधाणं णिय. तं तु छट्ठाणप० । छण्णोक० सिया० तं तु छट्ठाणप० । एवं पण्णारसक०। २७५. गवंस० उक्क० उदी० मिच्छ० णिय० तं तु छट्ठाणप० । सोलसक०छण्णोक० सिया तं तु छट्ठाणप० । $ २७६. हस्सस्स उक्क. अणुभागमुदी० मिच्छ०-णवंस०-रदि० णि. तंतु छट्ठाणपदिदं। सोलसक०-भय-दुगुंछ० सिया तं तु छट्ठाणप० । एवं रदीए । 5२७३. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला सोलह कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और फदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदोरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थान पतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। नपुंसकवेदका नियमसे उदीरक है। जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। २७४. अनन्तानुबन्धी क्रोधके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला मिथ्यात्व नपुंसकवेद और तीन क्रोधोंका नियमसे उदीरक है। जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार पन्द्रह कषायोंको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। २७५. नपुसकवेदके उत्कृष्ट अनुभागको उदीरणा करनेवाला मिथ्यात्वका नियमसे उदीरक है । जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । सोलह कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदोरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। २७६. हास्यके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला मिथ्यात्व, नपुसकवेद और रतिका नियमसे उदीरक है। जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है और अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। सोलह कषाय और भय-जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार रतिको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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