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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए सण्णियासो ..$ २७०. तिरिक्खेसु मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि०-सोलसक० ओघं । इत्थिवेद० उक्क० अणुभामुदी० मिच्छ० णि तं तु छट्ठाणप० । सोलसक०-छण्णोक० सिया० तं तु छट्ठाणप० । एवं पुरिसवे०–णवूस० । $२७१. हस्सस्स उक्क० अणुभागमुदी० मिच्छ-रदि० णिय० तं तु छट्ठाणप० । सोलसक०-तिण्णिवेद-भय-दुगुछ० सिया तं तु छट्ठाणप० । एवं रदीए । एवमरदि-सोगाणं । २७२. भय० उक्क० अणुभागमुदी० मिच्छ० णि तं तु छट्ठाणप० । सोलसक०अट्ठणोक० सिया० तं तु छट्ठाणप० । एवं दुगुंछाए। पंचिंदियतिरिक्खतिये एवं चेव । णवरि पञ्ज० इथिवे. णत्थि । जोणिणीसु इत्थिवेदो धुवो कायव्वो। २७०. तिर्यश्चोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सोलह कषायोंका भंग ओघके समान है। स्त्रीवेदके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला मिथ्यात्वका नियमसे उदीरक है। जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनभागका उदीरक है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । सोलह कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागको उदीरणा करता है। इसी प्रकार पुरुषवेद और नपुंसकवेदको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । $ २७१. हास्यके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला मिथ्यात्व और रतिका नियमसे उदीरक है। जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । सोलह कषाय, तीन वेद, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। इसी प्रकार रतिको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । तथा इसी प्रकार अरित और शोकको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। $ २७२. भयके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला मिथ्यात्वका नियमसे उदीरक है। जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । सोलह कषाय और आठ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। इसी प्रकार जुगुप्साको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें इसी प्रकार जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेद नहीं है और योनिनियोंमें स्त्रीवेद ध्रुव करना चाहिए।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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