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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए कालो $ २४४. आदेसेण सव्वणेरइय-सव्वतिरिक्ख-देवा भवणादि जाव अवराजिदा त्ति जाओ पयडीओ उदीरिज्जति तासिमोघं । मणुसतिये सव्वपय० उक० अणुभागुदी० जह० एयस०, उक्क० संखेजा समया। अणुक्क. सव्वद्धा । णवरि सम्मामि० अणुक्क० जहण्णुक्क० अंतोमु० । मणुसअपज० सव्वपयडी० उक्क० जह० एगस०, उक्क० आबलि० असंखे०भागो । अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । सवढे सव्वपय० उक्क० जह० एयस०, उक्क० संखेजा समया । अणुक्क० सव्वद्धा ! एवं जाव० । $ २४५. जह० पयदं । दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण सव्वपय० जह० अणुभागुदी० जह० एगस०, उक्क० संखेज्जा समया । अजह सव्वद्धा । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल भी अन्तर्मुहूर्त है, अब यदि नाना जीव सन्तानके त्रुटित हुए बिना सम्यग्मिथ्यात्व गुणको प्राप्त होते रहें तो उस कालका योग पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होता है, अतः यहाँ सम्यग्मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका उत्कृष्ट काल पल्यके असंसख्यातवें भागप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है। आगे गतिमार्गणाके अवान्तर भेदोंमें भी अपनी अपनी विशेषता जान कर काल घटित कर लेना चाहिए। $ २४४. आदेशसे सब नारकी, सब तिर्यञ्च, देव और भगनवासियोंसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें जिन प्रकृतियोंकी उदीरणा होती है उनका भंग ओघके समान है। मनुष्य त्रिकमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका काल सर्वदा है। इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका जघन्य एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सर्वार्थसिद्धिमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका काल सर्वदा है। इसी प्रकार अनाहारक मागेणा तक जानना चाहिए। विशेषार्थ-मनुष्यत्रिक और सर्वार्थसिद्धिके देवोंकी संख्या संख्यात है, इसलिए इनमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका उत्कृष्ट काल संख्यात समय तथा सम्यग्मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त . कहा है। मनुष्य अपर्याप्त यह सान्तर मार्गणा है, इसलिए इनमें इसके उत्कृष्ट कालको ध्यानमें रख कर यहाँ सब प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है। $२४५. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अजघन्य अनुभागके उदीरकोंका काल सर्वदा है । इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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